Friday, February 7

nप्रयागराज। माफिया डान अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद की बीच सड़क पर पुलिस सुरक्षा के बीच गोली मारकर हत्या किए जाने के मामले में एक बार फिर प्रयागराज चर्चा में है। इस वारदात का लाइव वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। दुनियाभर से प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं। कुछ लोग जहां इस घटना के बाद कह रहे हैं कि माफिया और गुंडों का ऐसे ही अंत होना चाहिए तो वहीं कई लोग पुलिस सुरक्षा के बीच हुई वारदात पर सवाल उठा रहे हैं। कुछ ने तो इसे सोची समझी साजिश का हिस्सा भी बता दिया है।
nइस वारदात के बाद अब लोग कई महत्वपूर्ण सूचनाएं जानना चाहते हैं। इसके लिए इंटरनेट पर तेजी से सर्च किए जा रहे हैं। लोग यह सर्च कर रहे हैं कि प्रयागराज में इसके पहले कब कब सड़क पर इस तरह से शूटआउट हुए हैं। साथ ही अशरफ अहमद ने आखिरी शब्द गुड्डू मुस्लिम का नाम लिया था। अब प्रयागराज के बाहर के लोग यह जानना चाहते हैं कि आखिर यह गुड्डू मुस्लिम कौन है। माफिया के साथ इसके क्या संबंध रहे हैं। 
nआपको बता दें कि गुड्डू मुस्लिम वही सख्श है जो कुछ दिन पहले हुई वारदात में खुलेआम सड़क पर बमबारी कर रहा था। अब उत्तर प्रदेश को उसकी तलाश है। इसके लिए देश के कई हिस्सों में यूपी पुलिस ने संपर्क किया है। 

nउमेश पाल हत्याकांड से जुड़े कई किरदार अब तक सामने आ चुके हैं। हत्या में शामिल चार आरोपी पुलिस मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं। इनमें अतीक अहमद का बेटा असद अहमद भी है। इसके अलावा मुख्य साजिशकर्ता अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की शनिवार की रात गोली मारकर हत्या कर दी गई। अतीक का एक दूसरा बेटा नैनी जेल में बंद है। दो नाबालिग बेटे बाल सुधार गृह में हैं। वहीं, अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन अब भी फरार चल रही है। अतीक की बहन नूरी और उसकी दो बेटियां, अशरफ की पत्नी जैनब भी फरार चल रही है। पुलिस को इनकी तलाश है। 

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इन सबके अलावा एक और नाम है, जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा है। वह नाम है गुड्डू मुस्लिम का। ये वही गुड्डू मुस्लिम है, जिसका अशरफ ने मरने से ठीक पहले नाम लिया था। अब आपको गुड्डू मुस्लिम के कारनामे भी बता देते हैं। दरअसल, यही वह गुड्डू मुस्लिम है, जिसने उमेश पाल की हत्या के दौरान एक के बाद एक कई बम धमाके किए थे। गुड्डू मुस्लिम को बमबाज गुड्डू भी बोलते हैं। असद के एनकाउंटर के बाद गुड्डू को पकड़ने की कोशिशें तेज हो गई हैं। अफवाह तो उसके भी एनकाउंटर की थी, लेकिन बाद में यूपी पुलिस ने इसे खारिज कर दिया।

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गुड्डू मुस्लिम को जानने वाले लोग बताते हैं कि वह शुरू से ही बदमाश था। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में उसका जन्म हुआ था। स्कूली दिनों से ही वह लूट और रंगदारी वसूलने जैसे कांड में शामिल होने लगा। इसी दौरान कई बड़े बदमाशों के संपर्क में आया। बताया जाता है कि तब से ही वह बम बनाने लगा। हर रोज गुंडागर्दी और मारपीट की शिकायतों से परेशान होकर घरवालों ने उसे पढ़ने के लिए लखनऊ भेज दिया। लेकिन यहां से गुड्डू मुस्लिम ने बड़े अपराध को अंजाम देना शुरू कर दिया। बताया जाता है कि यहां उसकी मुलाकात पूर्वांचल के दो बाहुबली नेताओं अभय सिंह और धनंजय सिंह से हुई। उन दिनों ये भी लखनऊ यूनिवर्सिटी में ही पढ़ते थे। 

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रिपोर्ट्स के मुताबिक, गुड्डू मुस्लिम का नाम पहली बार तब चर्चा में आया। जब उसने 1997 में लखनऊ के चर्चित लामार्टीनियर स्कूल के गेम टीचर फेड्रिक जे गोम्स की हत्या कर दी। इस मामले में गुड्डू गिरफ्तार भी हुआ था। गुड्डू के साथ राजा भार्गव और धनंजय सिंह को भी इस मामले में आरोपी बनाया गया था। कहा तो ये भी जाता है कि पुलिस के सामने गुड्डू ने अपना गुनाह भी कबूल कर लिया था, लेकिन इसके बावजूद कोर्ट में पुलिस तीनों को दोषी साबित नहीं कर पाई। तीनों बरी हो गए।

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इस दौरान गुड्डू ने एक और हत्या का जुर्म कबूला था। तब उसने बताया था कि फैजाबाद के ठेकेदार संतोष सिंह को भी उसी ने मारा था। गुड्डू ने ये भी बताया कि कैसे संतोष को उसने जहर दिया और उसकी लाश रायबरेली में छोड़ दी। इसके बाद उसकी कार, राइफल और पैसे लूट लिए। 

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इसी हत्या के बाद अभय और धनंजय के बीच दुश्मनी बढ़ी। २६ साल बाद भी वो एक दूसरे के दुश्मन हैं। इस हत्या के बाद गुड्डू धनंजय का और भी ज्यादा करीबी हो गया। लखनऊ में रहते हुए गुड्डू जुर्म की दुनिया का बड़ा नाम बन गया। उन दिनों लखनऊ में एक और नाम की तूती बोलती थी। वह नाम था, बाहुबली विधायक अजीत सिंह का। रेलवे मोबाइल टॉवर लगाने के सभी ठेके अजीत को ही मिलते थे। धनंजय इन ठेकों को हासिल करना चाहता था और इसके लिए उसने गुड्डू का सहारा लिया। 

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कहा जाता है कि गुड्डू ने विभाग के अधिकारियों को अपहरण करना शुरू कर दिया। उन्हें हत्या की धमकी देकर टेंडर अपने कब्जे में ले लेता था। गुड्डू कोई भी टेंडर पूल कराने वाला बड़ा नाम बन चुका था। उसके एक इशारे पर सरकारी टेंडर यहां से वहां हो जाते थे। साल 1997 में बसपा सरकार के दौरान राज्य निर्माण निगम के इंजीनियर को बीच सड़क पर गुड्डू ने गोलियों से भून दिया गया। इस हत्या में धनंजय सिंह के साथ गुड्डू मुस्लिम भी आरोपी बनाया गया था।

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 सुपारी किलिंग से ली गई विधायक की जान
n  इलाहाबाद (Prayagraj) में बालू के ठेकों से शुरू हुआ विवाद वर्चस्व की लड़ाई तक पहुंचा। इसके बाद 90 के दशक में पहली बार सुपारी किलिंग हुई। बात की शुरुआत भी सबसे पहले और राजनीति में बड़ा कद रखने वाले जवाहर यादव पंडित हत्याकांड से। सपा के बाहुबली नेताओं में शामिल और झूंसी से विधायक जवाहर यादव पंडित की 13 अगस्त 1996 को दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। यह पहली बार था, जब किसी हत्याकांड में एके-47 जैसे अत्याधुनिक हथियार का इस्तेमाल हुआ था। 
nजब तक खून गाढ़ा होकर बहना बंद नहीं हुआ, चलती रहीं गोलियां
nये तत्कालीन इलाहाबाद के डरावने इतिहास का सबसे खतरनाक हत्याकांड था। उस दौर में प्रयागराज का विस्तार हो रहा था। नई कॉलोनियां आकार ले रहीं थीं। तभी शहर के सबसे पॉश इलाके सिविल लाइंस की शाम गोलियों की आवाज से गूंज उठी। सपा विधायक जवाहर पंडित के साथ ही उनके चालक गुलाब यादव और एक राहगीर कमल दीक्षित की गोली लगने से मौत हो गई। हमलावरों ने तब तक गोलियां चलाईं, जब तक खून शरीर से गाढ़ा होकर निकलना बंद नहीं हो गया। इसमें कृष्णानंद राय का नाम आया और इसकी गूंज सियासी गलियारों में लंबे दौर तक सुनाई देती रही। 

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विधायक के हत्याकांड से शुरू हुआ खूनी सफर
nवर्चस्व की लड़ाई से शुरू हुआ सफर आगे भी जारी रहा। इस बार बदले की भावना के साथ अति महत्वकांक्षा भी थी। जब 18 साल बाद फिर एक राजनेता के खून से इलाहाबाद की सड़कें लाल हो चुकी थीं। इस बार निशाने पर इलाहाबाद पश्चिम से बसपा के टिकट पर साल 2004 में चुनाव जीते विधायक राजू पाल थे। राजू पाल किसी समय अतीक अहमद के काफी करीबी हुआ करते थे, लेकिन उन्होंने 2002 में उनके खिलाफ चुनाव लड़ा और हार गए। अतीक 2004 में इस्तीफा देकर सांसद बना और अपने भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को मैदान में उतारा। अशरफ बसपा के राजू पाल से चुनाव हार गया, बस यहीं से एक नए खूनी सफर की शुरुआत हुई। 25 जनवरी, 2005 को विधायक राजू पाल स्वरूप रानी नेहरू (SRNH) अस्पताल से अपने घर लौट रहे थे। अस्पताल से निकलने के बाद अपनी गाड़ी में बैठे। गाड़ी खुद राजू पाल ही चला रहे थे। इस दौरान कुछ लोग स्कार्पियो से उनका पीछा कर रहे थे। रास्ते में राजू पाल अपने समर्थक की बहन को लिफ्ट देने रुकते हैं। धूमनगंज क्षेत्र में नेहरू पार्क के थोड़ा आगे बढ़ते हैं। तभी हमलावर उन्हें ओवरटेक करते हैं और चंद सेकेंड में ही फायरिंग शुरू हो जाती है।

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 उमेश पाल  निशाना 
nविधायक राजू पाल की हत्या में सबसे बड़े गवाह थे, उनके बचपन के दोस्त उमेश पाल। उमेश पाल की 24 फरवरी 2023 को ही प्रयागराज में उनके सुलेम सराय स्थित घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई। उमेश जिला कोर्ट में वकील थे। हमलावरों ने उन पर गोलियां और बम बरसाए। इसमें उमेश को संभलने का मौका नहीं मिला। इसमें अतीक के साथ ही तीसरे नंबर के बेटे असद का नाम सामने आया। सीसीटीवी में उसका फुटेज भी दिखाई दिया। इसके बाद पुलिस ने एक दिन पहले ही गुरुवार को उसे एनकाउंटर में ढेर कर दिया। माना जा रहा है कि राजनीति के वर्चस्व की यह लड़ाई अब अतीक और अशरफ की हत्या के साथ खत्म हो चुकी है, लेकिन हालात अभी भी बहुत ठीक नहीं हैं।

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