sawan ; shivmahima : सावन के महीने में भगवान शिव का काफी महत्व होता है। शिवमंदिरों में लोग जल चढ़ाने और दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। भगवान शिव को अलग-अलग रूपों और नाम से पूजा जाता है। इसी में महामृत्युंजय भी एक रूप शामिल है। देश के कुछ ही स्थानों पर महामृत्युंजय के मंदिर हैं। इसमें रीवा में किला स्थित मंदिर सबसे पुराना माना जाता है। मान्यता है कि यहां पर भगवान को जल चढ़ाने और उनका दर्शन करने मात्र से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
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इस मंदिर में दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का आना होता है लेकिन सावन के महीने में यह संख्या बढ़ जाती है। खासतौर पर सावन का जब सोमवार हो, तब दर्शन के लिए लंबी लाइन लगती है। मंदिर परिसर में महामृत्युंजय मंत्र का जाप और अनुष्ठान भी लोग करते हैं।
n पंडित दीनानाथ शास्त्री बताते हैं कि महामृत्युंजय भगवान के दर्शन और जलाभिषेक से अकाल मृत्यु, रोग और अन्य विपत्तियों से मुक्ति मिलती है। रीवा में स्थित महामृत्युंजय शिवलिंग भी अपने आप में खास है। इसमें एक हजार छिद्र हैं, कहा जाता है कि यह भगवान के नेत्र हैं। साथ ही शिवलिंग का रंग सफेद है जो मौसम के अनुसार बदल जाता है।
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शिव पुराण के मुताबिक भगवान भोलेनाथ ने महासंजीवनी महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति की थी। इस मंत्र का जाप यहां पुजारियों द्वारा कराया जाता है। महाशिवरात्रि, सावन के सोमवार और बसंत पंचमी, मकर संक्रांति पर यहां मेले जैसा माहौल होता है। शहर के लोग अपना नया कार्य भगवान के दर्शन के साथ ही प्रारंभ करते हैं, इसलिए हर दिन लोगों की भीड़ जमा रहती है।
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मंदिर स्थापना को लेकर हैं कई किवदंतियां
nमंदिर की स्थापना को लेकर कई किदवंतियां हैं, जिसमें कहा जाता है कि बांधवगढ़ से राजा शिकार के लिए रीवा आए थे। उस दौरान रीवा नदी का किनारा था और जंगल यहां था। शिकार के दौरान राजा ने देखा कि एक शेर चीतल को दौड़ा रहा है। जब वह मंदिर के समीप आया तो शेर चीतल का शिकार किए बिना लौट गया। राजा यह देखकर हैरत में पड़ गए। कहते हैं कि राजा ने खुदाई कराई। गर्भ गृह से महामृत्युंजय भगवान को सफेद शिवलिंग निकला। तब यहां पर मंदिर की स्थापना कराई गई। उस दौरान ज्योतिषियों ने बताया कि यह पावन स्थल है। इसके बाद मंदिर के पास ही किला बनाया गया और यहीं से रीवा राज्य का संचालन शुरू हुआ।
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nराजा भाव सिंह ने बनवाया था मंदिर
n महाराजा विक्रमादित्य ने जब बांधवगढ़ से राजधानी रीवा की तो उन्होंने किले का निर्माण कराया। उस दौरान यह मंदिर चबूतरे में था। जिसे आगे चलकर महाराजा भाव सिंह ने भव्य मंदिर का स्वरूप दिया। रीवा रियासत के राजा सुबह-शाम यहां पूजा करते थे। प्रजा भी दर्शन को उमड़ती थी। शहर के अलग-अलग त्योंहारों में भी लोग यहां पहुंचते हैं।