Saturday, February 8

  केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 के बिन्दुओं पर चर्चा के लिए वेबीनार का आयोजन किया गया। जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों के पूर्व सूचना आयुक्तों और आरटीआई एक्टिविस्टों ने अपने विचार रखते हुए कहा है कि यह चिंता जनक है। इसके माध्यम से सूचना के अधिकार कानून 2005 में प्रस्तावित किए जाने वाले फेरबदल से सूचनाएं सहजता से मिल पाना मुश्किल हो जाएगा। विशेषज्ञों ने कहा कि यह स्पष्ट होता है की डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 की धारा 29(2) और 30(2) में जो प्रावधान किए गए हैं उसमें आरटीआई कानून पर बड़े पैमाने पर बदलाव हो जाएगा। निजता और व्यक्तिगत जानकारी के नाम पर आरटीआई कानून में यदि संशोधन हो जाता है तो आने वाले समय में आम व्यक्ति को सामान्य जानकारी के लिए भी भटकना पड़ेगा और जानकारी नहीं मिल पाएगी।

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वेबीनार में पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह, आईटी एक्सपर्ट एवं उत्तराखंड से आरटीआई रिसोर्स पर्सन प्रोफेसर वीरेंद्र कुमार ठक्कर, आरटीआई कार्यकर्ता देवेंद्र अग्रवाल, अधिवक्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट नित्यानंद मिश्रा एवं सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी सहित उपस्थित देश के विभिन्न हिस्सों से एक्टिविस्ट ने अपनी बातें रखी।

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शैलेश गांधी ने कहा कि सरकार आरटीआई कानून को समाप्त करने का प्रयास कर रही है। इसके पहले आरटीआई कानून में किए गए संशोधन में सूचना आयुक्तों की शक्तियों को घटाकर आरटीआई पर कुठाराघात किया गया। आम जनता के लिए जो भी थोड़ा बहुत साधन बचा हुआ था डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 के मसौदे से यह स्पष्ट है कि इस कानून के लाए जाने के बाद कोई भी लोक सूचना अधिकारी व्यक्तिगत जानकारी के नाम पर आरटीआई आवेदको और आम जनमानस को जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं होगा और उस पर अपील के दौरान सूचना आयुक्तों के पास भी शक्तियां नहीं होंगी की आम जनता को जानकारी दिलवा दें। इतना ही नहीं मीडिया में प्रकाशित होने वाले डाटा पर भी निगरानी बढ़ जाएगी। आफ द रिकार्ड सूचनाएं एकत्र कर रिपोर्ट प्रकाशित करने पर नियंत्रण लग जाएगा और खबरों में यह बताना होगा कि उक्त डाटा कहां से संकलित किया गया है। अब तक सूत्र का खुलासा नहीं होता था।

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–  संसद और विधायिका को दी जाने वाली जानकारी सार्वजनिक हो
nपूर्व सूचना आयुक्तों ने कहा की आरटीआई कानून की धारा 8(1)(जे) में यह प्रावधान था कि जो जानकारी लोक सूचना अधिकारी ऐसा मानता है कि व्यापक लोकहित से संबंधित है और वह जानकारी लोकसभा और विधानसभा को दी जानी चाहिए ऐसी जानकारी आम जनता को भी दी जानी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से प्रस्तावित डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 की धारा 29(2) एवं 30(2) के माध्यम से किए जाने वाले आरटीआई कानून में संशोधन के बाद आरटीआई कानून की धारा 8(1)(जे) को ही खत्म कर दिया जाएगा और इससे आम जनता को अब कोई भी जानकारी नहीं मिल पाएगी। अब ऐसे में सूचना आयुक्त के पास भी कोई शक्ति नहीं रहेगी जिससे वह आम जनता को कोई जानकारी उपलब्ध करवा पाए क्योंकि ज्यादातर जानकारियां व्यक्तिगत जानकारी और निजता के नाम पर रोक दी जाएंगी।  

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