Aachrya Vidyasagar Mahraj : आचार्य विद्यासागर के समाधिमरण के साथ ही पूरे देश के करोड़ों भक्त स्तब्ध है। हर कोई आचार्य विद्यासागर से जुड़े संस्मरणों को याद कर रहा है। भक्तगण आचार्यश्री विद्यासागर को छोटेबाबा के नाम से भी पुकारते थे। आचार्यश्री विद्यासागर के भक्तों ने उन्हें यह नाम तब दिया था, जब आचार्यश्री विद्यासागर एक बार विहार करते हुए कुंडलुपर दमोह पहुंचे थे। इस दौरान आचार्य विद्यासागर भक्तों को संबोधित करते हुए कह थे कि बड़ेबाबा उनका सीधा कनेक्शन है, बुला रहे थे तो मैं दर्शन करने आ गया। बड़ेबाबा के दरबार कुंडलपुर में आचार्य विद्यासागर के इस प्रवचन के बाद लोग उन्हें छोटे बाबा संबोधित करने लगे थे। इसके बाद बड़ेबाबा और छोटेबाबा के जयकारे बुंदेलखंड में विशेषतौर पर सुनने मिलते थे।

आचार्यश्री का कुंडलपुर में भगवान आदिनाथ जिन्हें बड़े बाबा के नाम से जाना जाता हैए इनके प्रति गहरा लगाव रहा है। जिनके छोटे से मंदिर को देश के सबसे उच्च शिखर वाले मंदिरों में शुमार होने की प्रेरणा दी। आचार्य विद्यासागर महाराज का जन्म १० अक्टूबर १९४६ शरद पूर्णिमा को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सद्लगा गांव में हुआ था। उनके पिता मल्लप्पाजी अष्टगे व माता श्रीमंतीअष्टगे ने उनका नाम विद्याधर रखा। विद्याधर में बचपन से ही धर्म के प्रति लगाव था। वह घर पर अपने भाईयों और मित्रों के साथ बचापन में धार्मिक खेलों का मंचन करते थे।

कन्नड़ भाषा में हाइस्कूल तक अध्ययन करने के बाद विद्याधर ने  1967 में आचार्य देश भूषण महाराज से ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया था। कठिन साधना का मार्ग पार करते हुए 22 साल की उम्र 30 जून 1968 को अजमेर में आचार्य ज्ञान सागर महाराज से मुनि दीक्षा ली। 22 नवंबर 1972 को अजमेर में ही आचार्य की उपाधि देकर मुनि विद्यासागर से आचार्य विद्यासागर बना दिया। जिसके बाद देश भ्रमण पर निकल गए।

आचार्यश्री की रचनाओं पर हुए शोध आचार्यश्री विद्यासागर महाराज संस्कृत, प्राकृत भाषा के साथ हिंदी, मराठी और कन्नड़ भाषा का भी विशेष ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिंदी और संस्कृत में कई रचनाएं भी लिखी हैं। उनके सारे महाकाव्यों में अनेक सूक्तियां भरी पड़ी है। जिनमें आधुनिक समस्याओं की व्याख्या तथा समाधान भी है। सामाजिकए राजनीतिक व धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त कुरीतियों का निदर्शन भी है।

पीएचडी व मास्टर डिग्री के कई शोधर्थियों ने उनकी रचनाएं निरंजना शतक, भावना शत, परीशह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक पर अध्ययन व शोध किया है। सूती वस्त्र निर्माण से आत्मनिर्भरता आर्चाश्री विद्यासागर महाराज की प्रेरणा से कुंडलपुर में १८९ फुट ऊंचाई के शिखर वाला देश का सबसे ऊंचा मंदिर बन रहा है, वहीं आत्मनिर्भरता के लिए सूती वस्त्र निर्माण के साथ गौ शाला से घीए गौ.मूत्र से अनेक औषधियों का निर्माण भी किया जा रहा हैए जिससे आचार्यश्री के आत्म निर्भर अभियान से कई युवा लाखों का पैकेज को छोड़कर आचार्यश्री के आत्मनिर्भर अभियान में अपना योगदान देने में जुट गए हैं।

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