भोपाल। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने मध्यप्रदेश के दौरे में सत्ता और संगठन को तल्ख चेतावनी दी है। जिसके बाद से भाजपा के भीतर हड़कंप मच गया है। शाह ने कहा है कि मध्यप्रदेश के कई जिलों में कम संख्या में मतदान हुए हैं, इससे यदि भाजपा को नुकसान हुआ तो वहां से बनाए गए मंत्रियों पर सख्त कार्रवाई होगी। अमित शाह की यह चेतावनी प्रदेश के कई नेताओं की मुश्किलें बढ़ा रही है। क्योंकि भाजपा में अतिम शाह की बात का विरोध करना फिलहाल किसी के वश में नहीं है। इसलिए यदि परिणामों में कोई बदलाव हुआ तो मध्यप्रदेश सरकार के चेहरे भी बदले नजर आ सकते हैं। कई मंत्रियों की कुर्सी छीनी जा सकती है।
लोकसभा चुनाव के पहले और दूसरे चरण में प्रदेश की 12 संसदीय सीटों पर मतदान के गिरे प्रतिशत ने राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ा दी है। 2019 की तुलना में दूसरे चरण में दमोह, होशंगाबाद, खजुराहो, रीवा, सतना और टीकमगढ़ में 9.09 प्रतिशत कम कुल 58.59 प्रतिशत मतदान हुआ है।

370 वोट बढ़ाने के दावे हवा में
वोटों के गिरे प्रतिशत से भाजपा अपने वर्चस्व वाली सीटों पर कुल वोटिंग कराने में पिछड़ती दिख रही है। 370 सीटों के नारे के साथ हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने के दावे कर रही भाजपा के राज्य सरकार के तीन कैबिनेट और 6 राज्य मंत्रियों के गढ़ में ही वोटरों की सुस्ती रही। वे वोटरों को घर से बूथ तक नहीं ला सके। खास यह है कि यही मंत्री 6 माह पहले विधानसभा चुनाव में अपनी सीटों पर रिकॉर्ड मतदान कराने में सफल रहे थे। लेकिन लोकसभा चुनाव में उनकी अपनी ही विधानसभा सीटों पर 10 से 21 फीसदी तक कम मतदान हुआ। इससे इतर कांग्रेस कम मतदान को फायदे के तौर पर देख रही है।

प्रमुख नेताओं की सीटों में कम हुआ मतदान

आंकड़े बताते हैं, होशंगाबाद लोकसभा सीट पर 67.21 प्रतिशत वोट पड़े हैं। यह पिछले चुनाव में पड़े कुल वोट 74.19 प्रतिशत की तुलना में 6.98 प्रतिशत कम हैं। चिंता इसलिए है कि इसी लोकसभा सीट से दो कैबिनेट मंत्री प्रहलाद पटेल (Prahlad Patel) , उदय प्रताप सिंह और राज्यमंत्री नरेंद्र पटेल आते हैं। यहां की आठों विधानसभा सीटें भाजपा के पास हैं। वहीं, डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल के गृह क्षेत्र रीवा संसदीय सीट पर भी 10.91 प्रतिशत कम वोटिंग हुई। यहां भी 8 में से 7 विधानसभा सीटें भाजपा के पास हैं। कहा जा रहा है कि टिकट के दूसरे दावेदारों ने भी इस बार चुनाव से दूरी बना ली थी और प्रबंधन से लेकर प्रचार तक पूरी जिम्मेदारी राजेन्द्र शुक्ला (Rajendra Shukla) के पास ही रही, इसके बावजूद वह मतदान का प्रतिशत नहीं बढ़ा पाए। उनकी खुद की रीवा विधानसभा में भी कम मतदान हुआ है। सबसे ज्यादा वोटिंग गिरने का रिकॉर्ड सीधी संसदीय सीट ने बनाया है। यहां 2019 की तुलना में मत 13 प्रतिशत घटा है। इससे चितरंगी से राज्यमंत्री राधा सिंह भी सवालों के घेरे में हैं। वहीं, 7 भाजपा विधायकों वाली जबलपुर संसदीय सीट पर कैबिनेट मंत्री राकेश सिंह का प्रभाव वोटों का प्रतिशत बढ़ाने में सफल नहीं दिख रहा।

भाजपा कार्यकर्ता रहे उदासीन

कम वोटिंग के प्रतिशत की वजहें सामने आ रही हैं। पहला तो यह कि वैवाहिक आयोजन और गर्मी अधिक है। ऐसी स्थितियां पूर्व के चुनावों में भी रही हैं। राजनीतिक विश्वलेषक धीरेश सिंह गहरवार बताते हैं कि चुनाव से पहले ही मीडिया और भाषणों में यह प्रसारित हुआ कि इस बार चार सौ पार भाजपा का गठबंधन सीटें लाएगा। दो चुनावों में मोदी लहर पहले भी रही है, वह इस बार भी जारी रहेगी। साथ ही राममंदिर के मुद्दे को भी प्रचारित किया गया। ऐसे में आम मतदाता के मन में भी यह बात समा गई कि वोट किसी को देंगे आएगा तो मोदी ही। इसी तरह अति आत्मविश्वास भाजपा के कार्यकर्ताओं में भी रहा कि भारी वोटों से चुनाव जीतेंगे ही, इसलिए गर्मी के मौसम में काहे परेशान हों। लेकिन जिस तरह का दो चरणों में फीडबैक आया है उससे भाजपा की चिंता बढ़ रही है।

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