Friday, February 7

रीवा. कलेक्टर कार्यालय में रिश्वत लेने का मामला फिर सामने आया है। भू-अर्जन अधिकारी शाखा में पदस्थ सहायक ग्रेड-3 कर्मचारी हीरामणि तिवारी को लोकायुक्त टीम ने चेंबर में ही एक हजार रुपए की रिश्वत लेते गिरफ्तार किया है। बाबू ने नहर के लिए अधिग्रहित भूमि का मुआवजा देने के एवज में घूस मांगी थी, इसमें से बाबू 1500 रुपए पहले ही ले चुका था।

शिकायतकर्ता सुनील पांडेय पिता स्व. श्यामसुंदर निवासी जोरौट(मनगवां) ने बताया कि वर्ष 2017 में नहर के लिए भूमि अधिग्रहित की गई थी, जिसका पिता के नाम पर मुआवजा बना था लेकिन भुगतान नहीं हुआ। कोरोना काल में पिता की मौत के बाद माता के नाम पर भूमि का वारिसाना कराया और उसके मुआवजे के लिए भटकते रहे। बीते महीने जनसुनवाई में कलेक्टर को आवेदन दिया तो उन्होंने भू-अर्जन अधिकारी को कार्रवाई का निर्देश देते हुए आवेदक को भेजा। इसके बाद भी बाबू हीरामणि तिवारी ने मुआवजा अवार्ड 2 लाख 62 हजार 997 रुपए का भुगतान करने के एवज में रिश्वत की मांग कर दी और कहा कि इसमें कई लोगों को देना पड़ता है।
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बोला रुपए देने पर जल्दी काम होगा
कलेक्टर द्वारा भूअर्जन शाखा में भेजे गए आवेदक से बाबू ने कहा कि सामान्य प्रक्रिया में तीन महीने लगेंगे। रुपए देने पर काम जल्दी होगा। पहली किस्त के रूप में 1500 रुपए लेने के बाद एक हजार की और डिमांड करते हुए गुमराह करने लगा। उक्त प्रकरण आरोपी के पास 25 सितंबर 2024 से लंबित था। जिसके चलते आवेदक सुनील पांडेय ने लोकायुक्त एसपी से पूरा घटनाक्रम बताया। जहां से शिकायत का सत्यापन के बाद टीम भेजी गई।

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सीट छोडकऱ बाहर निकल गए कर्मचारी

दोपहर 12 बजे जैसे ही टीम ने भू-अर्जन शाखा में पहुंचकर बाबू को रंगे हाथ गिरफ्तार किया, वहां मौजूद अन्य कर्मचारियों में हडक़ंप मच गया। कई कर्मचारी अपनी सीट छोडकऱ बाहर निकल गए। पहले तीन-चार लोग ही लोकायुक्त की ओर से पहुंचे थे, देखते ही देखते दर्जनभर लोग जमा हो गए और ट्रैप की कार्रवाई से जुड़ी औपचारिकताएं पूरी की। इस बीच कलेक्टर कार्यालय का कामकाज प्रभावित हो रहा था, जिसकी वजह से लोकायुक्त की टीम आरोपी बाबू हीरामणि तिवारी को अपने साथ लोकायुक्त कार्यालय लेकर गई। जहां देर शाम तक कार्रवाई जारी रही। यह कार्रवाई डीएसपी प्रवीण सिंह परिहार के नेतृत्व में हुई, जिसमें अन्य अधिकारी भी मौजूद रहे।
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आफिस दर आफिस भटका, 50 हजार से अधिक हो गया खर्च
मुआवजा की राशि 2.62 रुपए पाने के लिए आवेदक लंबे समय से आफिस दर आफिस भटकता रहा। इस दौरान करीब 50 हजार रुपए खर्च भी लग गया। आवेदक सुनील ने बताया कि पिता के निधन के बाद माता के नाम पर वारिसाना कराने के लिए तहसील कार्यालय में रिश्वत मांगी गई। पटवारी ने पांच हजार और उसके सहयोगी ने चार हजार रुपए लिए। इसके बाद फाइल बाणसागर परियोजना कार्यालय पहुंची। जहां सीधे तौर पर रिश्वत की मांग तो नहीं की गई लेकिन दो महीने तक हर दूसरे-तीसरे दिन बुलाते रहे। गांव से रीवा आने-जाने में हजारों रुपए खर्च हुए। साथ ही बाणसागर के कर्मचारियों द्वारा चाय-नाश्ता मंगाया जाता रहा। जहां भी गया हर कोई रिश्वत की मांग करता रहा।

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कलेक्ट्रेट में पहले भी रिश्वत लेते पकड़े गए हैं कर्मचारी

कलेक्टर कार्यालय में रिश्वत लेने का यह कोई पहला मामला नहीं है। इसके पहले कई कर्मचारी-अधिकारी रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार हो चुके हैं। कुछ समय पहले ही अपर कलेक्टर आफिस का बाबू पकड़ा गया था। पूर्व में सहायक पंजीयक डीआर बसंत, जिला खाद्य आपूर्ति अधिकारी चेतराम कौशल, नायब तहसीलदार सहित कई बाबू पकड़े गए हैं।
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  • भूअर्जन का मुआवजा देने के बदले बाबू द्वारा रिश्वत की मांग किए जाने की शिकायत मिली थी। जिसमें डेढ़ हजार रुपए पहले भी बाबू ले चुका था। कलेक्ट्रेट में अपने चेंबर में एक हजार रुपए लेते समय बाबू को गिरफ्तार किया गया है। जिसकी विवेचना की जा रही है।
    प्रवीण सिंह, डीएसपी लोकायुक्त रीवा

 

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