रीवा। आदिम जाति कल्याण विभाग में फर्जी रूप से बिलों का भुगतान कराए जाने का मामला सामने आया है। इस मामले में कलेक्टर द्वारा कराई गई जांच में स्पष्ट हो गया है कि तत्कालीन जिला संयोजक एवं स्टोर प्रभारी ने मिलकर छात्रावासों के अधीक्षकों पर मौखिक रूप से अनाधिकृत तौर पर दबाव बनाया और उनसे लाखों रुपए का भुगतान अपने चहेते फर्मों को करा दिया। यह जांच सहायक कलेक्टर प्रपंज आर(आईएएस) एवं अपर कलेक्टर ने किया है। कलेक्टर के साथ ही जांच प्रतिवेदन संभागायुक्त को भी सौंपा गया है। यह शिकायत कुछ समय पहले कमल सिंह बघेल द्वारा की गई थी। जिस पर कलेक्टर ने जांच टीम गठित किया था। सभी आरोपों की बिन्दुवार जांच कराई गई है जिसमें अधिकांश शिकायती बिन्दु सही पाए गए हैं। जिसके चलते जांच प्रतिवेदन में तत्कालीन जिला संयोजक और स्टोर प्रभारी की भूमिका को सिविल सेवा आचरण नियम के विपरीत पाया गया है और दोनों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा की है। आदिम जाति कल्याण विभाग के जिला संयोजक का पद लंबे समय से प्रभार पर चल रहा है। जिस दौरान के मामले की शिकायत हुई है उस समय संयुक्त कलेक्टर पीके पांडेय के पास प्रभार था। इस कारण अब पांडेय की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसके पहले भी उन पर कई आरोप लगाए गए थे। साथ ही आरोप था कि स्टोर एवं निर्माण शाखा के प्रभारी विकास तिवारी को उनका संरक्षण है और वह छात्रावास अधीक्षकों पर उस बाबू के माध्यम से दबाव बनाते हैं।
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इन आरोपों की हुई जांच
शिकायत में कहा गया था कि हास्टलों में विद्युतीकरण कार्य के लिए बिना टेंडर के ही एक व्यक्ति को कार्यादेश सौंपकर करीब ६७ लाख रुपए का भुगतान कराया गया। इस पर जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि १४ मार्च २०२३ को ६८.३४ लाख रुपए का ई-भुगतान अधीक्षकों के खाते में गया। जहां नियमों का पालन नहीं करते हुए बिना टेंडर के ही भुगतान ठेकेदार को करा दिया गया। जबकि कलेक्टर ने भी निर्देशित किया था कि आरईएस के अधिकारियों की निगरानी में टेंडर प्रक्रिया अपनाई जाए। जिला संयोजक ने बिजली फिटिंग कराने के कार्य का भुगतान करने का आदेश भी जारी किया था। १४ छात्रावासों के खाते में जीएसटी की राशि अब तक जमा है जबकि यह शासन के खाते में होना चाहिए। जड़कुड़ और बिछरहटा के छात्रावासों के पास किसी तरह के भुगतान के अभिलेख भी नहीं मिले हैं। ठेकेदारों को आरटीजीएस के माध्यम से भुगतान करना था लेकिन अधीक्षकों से चेक दिलवाए गए। एक अन्य शिकायती बिन्दु में आरोप था कि शिष्यवृत्ति की राशि आफलाइन भुगतान कराई गई। इसपर ४६.६४ लाख रुपए का भुगतान हुआ है। नस्ती के अवलोकन से पता चला है कि बिना सक्षम स्वीकृति प्राप्त किए ही राशि का आहरण किया गया है जो वित्तीय संहिता के मानक सिद्धांतों के विपरीत है। इसी तरह हास्टलों में बिजली मेंटेनेंस के नाम पर अधीक्षकों पर दबाव बनाकर एक निजी फर्म को भुगतान कराया गया। कई ऐसे कार्यों के नाम पर राशि का भुगतान कराया गया जो मौके पर होना नहीं पाए गए हैं। इसलिए वित्तीय अनियमितता मानी गई है।
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अधीक्षकों ने कहा जबरिया भुगतान कराया गया
जांच प्रतिवेदन में उल्लेख किया गया है कि गुढ़, चरैया, बालक पिपराही, खुटहा, हर्रई प्रताप सिंह के अधीक्षकों ने अपने कथन में बताया है कि सहायक ग्रेड तीन विकास तिवारी द्वारा जिला कार्यालय में बुलाकर चेक के माध्यम से जबरिया भुगतान कराया गया। उक्त बाबू लगातार जिला संयोजक के नाम पर दबाव बनाता था।
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रीवा में फिर एक और भ्रष्टाचार उजागर, डिप्टी कलेक्टर सहित कई फंसे
कलेक्टर द्वारा गठित जांच दल ने तत्कालीन जिला संयोजक और स्टोरी की भूमिका को बताया संदिग्ध
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