रीवा। अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के यूटीडी में संचालित विधि पाठ्यक्रम को बार काउंसिल आफ इंडिया की ओर से नवीनीकरण की अनुमति मिल गई है। लंबे समय से इसके लिए छात्र परेशान था, लगातार धरना-प्रदर्शन भी किया जा रहा था। वर्ष 2006 से लेकर अब तक हर साल पाठ्यक्रम नवीनीकरण का निर्धारित शुल्क जमा नहीं किया जा रहा था। जिसकी वजह से बार काउंसिल आफ इंडिया ने विश्वविद्यालय को अपनी संबद्धता सूची से हटा दिया था। इसकी वजह से स्टेट बार काउंसिल द्वारा अधिवक्ता के तौर पर किया जाने वाला नामांकन भी नवंबर 2023 से रोक दिया गया था। जिसके चलते सैकड़ों की संख्या में छात्र परेशान हो रहे थे। लगातार उठाई जा रही मांगों के बाद भी जब विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से छात्रों के हित में कदम नहीं उठाया गया तो हाईकोर्ट जबलपुर में याचिका दायर की गई।

वर्ष 2022 की पासआउट छात्रा प्रज्ञा मिश्रा ने अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा के माध्यम से कोर्ट में याचिका दायर की। जिसमें कहा गया कि जब प्रवेश लिया गया तो इस बात की जानकारी नहीं दी गई थी कि मान्यता का नवीनीकरण नहीं है। जिसकी वजह से छात्रों ने प्रवेश लिया और पढ़ाई पूरी करने के बाद अधिवक्ता के तौर पर नामांकन कराने स्टेट बार काउंसिल के पास पहुंचे थे। कुछ छात्रों का शुरुआती दिनों में अधिवक्ता के तौर पर नामांकन किया गया लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया गया। जिससे सैकड़ों छात्र वंचित रह गए। कोर्ट में चल रही सुनवाई के बीच ही बार काउंसिल आफ इंडिया ने बड़ा कदम उठाते हुए नवीनीकरण से जुड़ी मान्यता दे दी है।

कुछ दिन पहले सैकड़ों की संख्या में विधि छात्रों ने विश्वविद्यालय में प्रदर्शन किया था और मांग उठाई थी कि विश्वविद्यालय के स्तर पर जो शुल्क बार काउंसिल आफ इंडिया में जमा नहीं कराया गया है उसे जमा कराया जाए ताकि वंचित छात्रों को अधिवक्ता के रूप में काम करने का लाइसेंस जारी हो सके। उस दौरान कुलपति और कुलसचिव ने आश्वासन दिया था कि विश्वविद्यालय के स्तर की प्रक्रिया जल्द ही पूरी की जाएगी। राशि जमा भी कराई गई, जिसकी वजह से अब मान्यता मिल गई है। पूर्व के पास आउट छात्रों का स्टेट बार काउंसिल द्वारा अधिवक्ता के तौर पर नामांकन किया जा रहा था। दो वर्षों से नामांकन से वंचित छात्रों को कई तरह का नुकसान उठाना पड़ा है। सबसे अधिक उन छात्रों का नुकसान हुआ जिन्होंने सिविल जज के परीक्षा की तैयारी शुरू की थी। इसके लिए तीन वर्ष की अधिवक्ता प्रेक्टिस जरूरी होती है। अधिवक्ता नहीं बन पाने की वजह से छात्र इस लाभ से वंचित रह गए। साथ ही दो वर्षों तक वह अधर में रहे।

– हाईकोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 27 को
हाईकोर्ट में दायर याचिका पर बार काउंसिल आफ इंडिया और अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय को नोटिस जारी की गई थी। बार काउंसिल की ओर से पिछली दो सुनवाइयों में कोई जवाब नहीं दिया गया। इस कारण कोर्ट ने दस-दस हजार रुपए की दो बार कास्ट भी लगाई है। इस मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी को निर्धारित की गई है। इस सुनवाई से पहले ही समस्या का समाधान किया गया है, ताकि उस दौरान कोर्ट को जानकारी दी जा सके।

20.50 लाख रुपए जमा कराए
पाठ्यक्रम के संबद्धता नवीनीकरण का शुल्क वर्ष 2006 से अब तक का पूरा जमा नहीं कराया गया है। इस पर संबद्धता समाप्त करते हुए बार काउंसिल आफ इंडिया ने विश्वविद्यालय पर पेनालिटी भी लगाया है। जिस पर विश्वविद्यालय ने 20.50 लाख रुपए जमा किया है। कहा जा रहा था कि करीब 31 लाख रुपए विश्वविद्यालय को जमा करना है। कुछ राशि पहले ही जमा की जा चुकी है। अब मान्यता नवीनीकरण होने का पत्र विश्वविद्यालय पहुंच चुका है। इस कारण पूर्व में जमा शुल्क के समायोजन और पेनालिटी निरस्त करने की मांग विश्वविद्यालय प्रबंधन उठाएगा।
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याचिकाकर्ता के अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा ने बताया कि विश्वविद्यालय को मान्यता नवीनीकरण शुल्क हर साल जमा कराना था लेकिन वर्ष 2006 से जमा नहीं किया गया। सरकारी संस्था होने की वजह से प्रवेश होते रहे और डिग्री भी जारी होती रही। जब स्टेट बार काउंसिल ने नामांकन रोका तो छात्र सामने आए। दो बार बीसीआई की ओर से कोई जवाब नहीं आया, जिस पर दस-दस हजार की कास्ट भी कोर्ट ने लगाई है। अगली सुनवाई 27 जनवरी को है, इसके पहले बीसीआई ने प्रक्रिया पूरी की है।

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याचिकाकर्ता छात्रा प्रज्ञा मिश्रा ने कहा कि स्टेट बार काउंसिल में नामांकन के लिए आवेदन किया था। कई महीने के बाद नवंबर 2023 से नामांकन रोक दिया गया। पता चला फीस जमा नहीं है तो अपने हिस्से की जमा भी किया। फिर भी नामांकन नहीं दिया गया। जिसके बाद कोर्ट में याचिका लगाई, दो बार बार काउंसिल आफ इंडिया की ओर से कोई पेश नहीं हुआ। अगली सुनवाई 27 जनवरी को है।

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विधि के छात्र रहे कृष्ण मुरारी शुक्ला ने बताया कि हमारा जब बार काउंसिल में नामांकन नहीं हुआ तो कारण पता चला कि वर्ष 2006 से मान्यता का नवीनीकरण नहीं हुआ है। इस पर विश्वविद्यालय प्रबंधन से जानकारी ली गई तो यहां से मौखिक बताया गया कि पूरा शुल्क जमा है। हर जगह पत्राचार किए गए लेकिन किसी ने नहीं सुना। सिविल जज के लिए तीन साल की प्रेक्टिस जरूरी होती है। हमारे तो दो साल बर्बाद हो गए, इससे कई नुकसान उठाने पड़े।

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अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. सुरेन्द्र सिंह परिहार बताते हैं कि मान्यता नवीनीकरण का शुल्क बीच-बीच में जमा होता रहा है। इस बीच बीसीआई का कोई सूचना पत्र नहीं आया और पोर्टल से विश्वविद्यालय को संबंद्धता सूची से हटा दिया गया। जिससे नामांकन में छात्रों को असुविधा हो रही थी। अब 20.50 लाख रुपए जमा कराया गया है। जिसके बाद मान्यता से जुड़ा पत्र आ गया है। छात्रों के नामांकन अब शुरू हो जाएंगे।

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