Vidhansabha Election Madhya Pradesh : देश के पांच राज्यों में इनदिनों विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान तेजी से चल रहा है। लगातार एजेंसियों और टीवी चैनलों की ओर से दिए जा रहे सर्वे रिपोर्ट में सत्ताधारी दल भाजपा के लिए कड़ी चुनौती बताई जा रही है। मध्यप्रदेश में इनदिनों सबसे अधिक चर्चा विंध्य क्षेत्र की है।
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मध्यप्रदेश के गठन से पहले यह क्षेत्र विंध्य प्रदेश में आता रहा है। यहां का परिणाम हर बार चौकाने वाला होता रहा है। इस बार के परिणाम पर लोगों की नजर है। यह किसके पक्ष में होगा यह तो परिणाम घोषित होने पर ही पता चलेगा लेकिन सत्ता विरोधी लहर से बदलाव का अनुमान लगाया जा रहा है।
nवर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में एक ओर जहां मध्यप्रदेश के दूसरे हिस्सों में सत्ता विरोधी लहर उठी थी, वहीं विंध्य में खामोशी थी। इसका परिणाम चुनाव परिणाम में भी देखने को मिला। यहां की 30 सीटों में भाजपा को एकतरफा जीत हासिल हुई और 24 सीटों पर बड़े वोटों के अंतर से भाजपा के नेताओं ने जीत दर्ज की थी।
nइस बार माहौल बदला हुआ है। लगातार मीडिया रिपोर्ट्स भी इस ओर इशारा कर रही है। साथ ही भाजपा के स्वयं के सर्वे भी स्थिति सही नहीं बता रहे हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह सहित पार्टी के तमाश शीर्ष नेताओं के बीते छह माह के भीतर कई दौरे हो चुके हैं। कुछ दिन पहले ही अमित शाह ने नेताओं को सख्त निर्देश दिया था और कहा था कि असंतुष्टों को मनाओ। जरूरत पड़ी तो राष्ट्रीय अध्यक्ष भी आएंगे।
nभाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कई सीटों पर सभाएं और रोड शो किए, साथ ही रीवा में रात्रि विश्राम भी किया और पार्टी नेताओं से फीडबैक लिया। नड्डा ने नेताओं को जीत के मंत्र दिए हैं और कहा है कि हर हाल में मतदाताओं के बीच जाएं और भाजपा के लिए वोटिंग कराएं।
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– लोग कह रहे, विपक्ष में कौन इससे उन्हें लेनादेना नहीं
बीते दो दशक से मध्यप्रदेश में लगातार भाजपा का कब्जा बना हुआ है। इस जीत में विंध्य के वोटरों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मतदाताओं में इस बार सत्ता के प्रति आक्रोश जितना दिख रहा है वह पूर्व के वर्षों में नहीं रहा है। ग्राउंड में लोगों का कहना है कि वह अब बदलाव चाह रहे हैं। सत्ता के विरोध में किस तरह का प्रत्याशी है इससे उन्हें लेनादेना नहीं। एक अवसर दूसरों को भी देना चाहते हैं, यदि वह भी गड़बड़ी करेंगे तो उन्हें भी बदलेंगे। जनता का मूड सत्ताधारी दल ने भी समझा है और लगातार डैमेज कंट्रोल के प्रयास किए जा रहे हैं।
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ऐसा है कुछ हॉट सीटों का हाल
रीवा– रीवा के शहरी इलाके के साथ ही कुछ गांव में भी इस सीट में आते हैं। जहां पर चार बार से लगातार भाजपा के राजेन्द्र शुक्ला जीत रहे हैं। पिछले चुनाव को छोड़ दें तो यहां हर चुनाव उनके लिए आसान रहा है। वह हर बार मंत्री बनते रहे हैं। इस बार आखिरी के दो महीने के लिए मंत्री बने। राजेन्द्र शुक्ला और उनके समर्थक तो इस चुनाव को आसान मान रहे हैं, उनका तर्क है कि कांग्रेस के राजेन्द्र शर्मा से पहले भी मुकाबला हो चुका है। इस बार भी सीमित वोटों में समेंटेंगे। वहीं ग्राउंड में स्थिति बदली नजर आ रही है। पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को लोगों ने यह कहते हुए जिताया था कांग्रेस के प्रत्याशी अभय मिश्रा माफिया हैं, उनके जीतने से माहौल खराब होगा। लेकिन कांग्रेस ने ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया है, जिन्हें गुस्सा कब आया था यह लोगों को याद नहीं। सौम्यता और अपने काम के प्रति साफ-सुथरी छवि की वजह से राजेन्द्र शर्मा की स्थिति मजबूत होती जा रही है। वह व्यापारी वर्ग के संगठन से भी जुड़े रहे हैं, इसलिए भाजपा के मूल वोटबैंक में सेंध भी लगाते नजर आ रहे हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का कहना है कि राजेन्द्र शुक्ला ने केवल शहरी क्षेत्र पर फोकस रखा है। इस कारण रीवा में चौंकाने वाले परिणाम आने की संभावना जताई जा रही है।
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देवतालाब–
विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम की इस बार कांग्रेस ने जबरदस्त घेराबंदी की है। उनके सगे भतीजे पद्मेष गौतम को टिकट देकर घर पर ही घेरने का प्रयास किया गया है। ब्राह्मण का गिरीश गौतम को बड़ा सपोर्ट चुनावों में मिलता रहा है इस बार यह वर्ग दो भागों में बंटा हुआ है। वहीं कुछ ऐसे भी हैं कि जो चाचा-भतीजे दोनों से दूरी बनाना चाह रहे हैं। यहां से पिछले चुनाव में नंबर दो पर रहने वाली सीमा जयवीर सिंह फिर सपा से मैदान में हैं। उनका स्वयं का बड़ा वोटबैंक है। बसपा से अमरनाथ पटेल और आप सिंह दिलीप सिंह गुड्डू जैसे दिग्गजों की मौजूदगी ने भी चुनाव को रोचक बना दिया है। गिरीश गौतम की घेराबंदी चारों ओर से हो रही है। यहां भी चौंकाने वाले परिणाम आने की संभावना है।
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गुढ़–
भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले नागेन्द्र सिंह भी इस बार गुढ़ विधानसभा सीट पर घिरते नजर आ रहे हैं। वह पहले कांग्रेस से वर्ष 1980 में पहली बार विधायक चुने गए। इसके बाद भाजपा में आए और कई बार से जीत रहे हैं। इस बार उनकी उम्र को लेकर भी मुद्दा बनाया जा रहा है। उनकी उम्र 80 पार हो चुकी है। उनके सामने कांग्रेस से ताला घराने के कपिध्वज सिंह मैदान में हैं। इसके पहले दो चुनावों में अपने दम पर अच्छा प्रदर्शन कर चुके कपिध्वज को एक अवसर देने उनके समर्थक माहौल बना रहे हैं। लोगों का कहना है कि नागेन्द्र सिंह की उम्र अब सेवा लेने की हो गई है वह इस उम्र में क्या सेवा देंगे। उनके पुराने समर्थक इस बार कांग्रेस का झंडा लिए घूम रहे हैं। पूर्व में वह कह चुके थे कि अब चुनाव नहीं लड़ेंगे। इस बार भाजपा के दूसरे नेताओं ने भी टिकट की उम्मीद पाल रखी थी। इस कारण अब भाजपा अंतरकलह का भी सामना कर रही है। हाल ही में कई गांवों वीडियो वायरल हुए हैं जिसमें लोग भाजपा के प्रचारकों को भगा रहे हैं। लोगों का कहना है कि बदलाव कर नए को अवसर देना चाहते हैं। वह काम नहीं करेंगे उसकी समीक्षा अगले चुनाव में हो जाएगी। कांग्रेस भी जिस तरह से कपिध्वज सिंह के साथ लोग जुड़ रहे हैं, उससे आश्वस्त है कि रीवा जिले में गुढ़ सीट से वह आसानी से जीतेगी। कांग्रेस के दावे में कितना दम है यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे।
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सतना–
भाजपा ने अपने कई सांसदों को चुनाव मैदान में उतारा है। जिसमें सतना सांसद गणेश सिंह को भी सतना सीट से उतारा गया है। गणेश सिंह पर आरोप लगता रहा है कि वह लंबे समय से राजनीति कर रहे हैं लेकिन अपनी कुर्मी जाति के लोगों के अलावा अन्य को महत्व नहीं देते। सतना सीट में मुश्किलें इसलिए भी भाजपा के सामने हैं क्योंकि यदि जातिवाद चला तो गणेश सिंह की मुश्किलें बढ़ेंगी क्योंकि सतना सीट पर कुर्मियों की संख्या कम है और ब्राह्मण अधिक हैं। वह ओबीसी वर्ग का फंडा भी नहीं चला पाएंगे क्योंकि कांग्रेस ने भी ओबीसी के सिद्धार्थ कुशवाहा को टिकट दिया है। यहां अब सवर्ण मतदाता निर्णायक होंगे। भाजपा छोड़कर बसपा में गए रत्नाकर चतुर्वेदी की रैली में जिस तरह से भीड़ जुटी थी उसने त्रिकोणीय मुकाबले के संकेत दिए हैं।
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चुरहट–
सीधी जिले की चुरहट सीट हर चुनाव में चर्चा में रही है। इस सीट से कांग्रेस के कुंवर अर्जुन सिंह लड़ते रहे हैं। वह तीन बार मुख्यमंत्री भी रहे हैं। यहां से उनके पुत्र अजय सिंह राहुल भी कई बार लड़े और जीते हैं। पिछले चुनाव में भाजपा के शरदेंदु तिवारी ने अजय सिंह को हराकर सुर्खियां बटोरी थी। अजय सिंह राहुल प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं में गिने जाते हैं। उन्हें हराने वाले नेता से क्षेत्र के लोगों ने बड़ी अपेक्षाएं की थी लेकिन विधायक पर चिन्हित लोगों को लाभ पहुंचाने के आरोप लगते रहे हैं। ब्राह्मण बाहुल्य सीट पर वह जातिवाद के फार्मूले पर चुनाव जीतना चाह रहे थे लेकिन उनके पहले से क्षेत्र से ब्राह्मणों के नेता रहे पूर्व सांसद गोविंद मिश्रा के पुत्र राजन मिश्रा आम आदमी पार्टी से मैदान में हैं। ब्राह्मणों का बड़ा वर्ग विधायक शरदेंदु तिवारी से इसलिए नाराज है कि वह अपने वोट के लिए जातिवाद की राजनीति करते हैं लेकिन जब काम की बात होती है कि व्यक्तिवाद तक सीमित रहते हैं। कुछ चिन्हित लोगों ने ही उनके कार्यकाल में फायदा उठाया है। यहां का चुनाव इस बार त्रिकोणीय हो गया है। ब्राह्मणों के वोटों में बंटवारे के चलते ओबीसी वोट निर्णायक होंगे। अजय सिंह राहुल चुनाव हारने के बाद अपनी कमियों को सुधारने के लिए पांच साल लगातार क्षेत्र में सक्रिय रहे। कांग्रेस के नेता सुखेन्द्र सिंह दद्दा बताते हैं कि नेता विपक्ष एवं अन्य भूमिकाओं में होने की वजह से अजय सिंह राहुल प्रदेश भर में व्यस्त रहते थे। जिससे पिछले चुनाव में लोगों को गुमराह कर भाजपा ने जीत हासिल की थी। लोगों के मन में जो गुस्सा था वह निकल चुका है। वह चुनाव हारने के बाद भी लोगों के बीच में रहे। दावा है कि इस बार बड़े अंतर से वह जीतेंगे। यह दावा चुनाव परिणाम के बाद ही साबित होगा कि कितना सही या गलत है।
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एबीपी-सी वोटर के सर्वे ने भी विंध्य में बड़ी बढ़त बताई
एबीपी न्यूज चैनल और सी-वोटर ने ओपीनियन पोल जारी किया है। जिसमें प्रदेश में 118 से 130 तक सीटें कांग्रेस को मिलने का अनुमान है। वहीं भाजपा को 99 से 111 सीटें मिलने का अनुमान बताया गया है। इसमें विंध्य में कांग्रेस को 44 प्रतिशत से अधिक वोट पाने का अनुमान बताया गया है। जिस तरह से क्षेत्रों में लोगों का गुस्सा है उससे माना जा रहा है कि यह ओपीनियन पोल सही साबित हो सकता है।
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