रीवा। हत्या के एक मामले में सुनाए गए आजीवन कारावास की सजा पर हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा है कि आकस्मिक विवाद के दौरान मारपीट से आई चोट के चलते मौत को साजिशन हत्या नहीं कहा जा सकता। मामले में कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा को कम करते हुए दस वर्ष में तब्दील कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि वारदात हुई है, इसमें माफी नहीं दी जा सकती। इस कारण आरोपी को दस वर्ष की सजा भुगतनी होगी।
आरोपी पक्ष की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ता नागेन्द्र सिंह गहरवार ने बताया कि 30 अप्रेल 2014 को मृतक रामसिया साकेत निवासी बुढग़वां थाना मनगवां, उम्र 65 वर्ष की बहू बुटन साकेत और अभियुक्त परमेश्वरदीन साकेत की पत्नी के बीच चप्पल चोरी को लेकर विवाद हुआ। दूसरे दिन एक मई को विवाद को लेकर आरोपी परमेश्वरदीन ने बुटन साकेत घर पहुंचकर गाली-गलौज किया। बुटन साकेत ने मना किया तो मारपीट की।
इस बीच उसका ससुर रामसिया बीच बचाव करने आया, जिस पर आरोपी ने सिर पर लाठी मारी। उसे उपचार के लिए संजयगांधी अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां पर 18 मई 2014 को मौत हो गई। हत्या के मामले में आरोपी को जिला न्यायालय से आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। हाईकोर्ट के डबल बेंच शील नागू और रूपेशचंद्र वार्षणेय ने अपील पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए कहा है कि यह सोची समझी साजिश नहीं थी। परिस्थति के अनुसार विवाद हुआ जिसमें घातक हथियार का उपयोग नहीं किया गया। इस कारण आकस्मिक मौत मानते हुए दस वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई है।