Friday, February 7

रीवा।  लोक भाषा बघेली के विकास के लिए प्रतिबद्ध साहित्यिक संस्था “बघेली सेवा मंच रीवा” के संयोजन में, स्थानीय होटल सेलिब्रेशन के सभागार में, श्रवण प्रसाद नामदेव रचित *”खंडकाव्य शूर्पणखा एवं दक्षिण पठानी कार्तिकेय”* का विमोचन संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि प्रोफेसर एनपी. पाठक, पूर्व कुलपति एपीएसयू रीवा ने पुस्तक पर चर्चा करते हुए कहा, कि लेखक की विशेष दृष्टि श्री रामचरित मानस के उन पात्रों पर पड़ी है, जिन्हें अन्य पात्रों की अपेक्षा अधिक महत्व नहीं दिया था। सूर्पनखा पर अलग वैचारिक दृष्टि स्वागत योग्य है। स्वस्थ समाज के निर्माण में सबका अलग -अलग महत्व है। फिर किसी भी पात्र की भूमिका को कमतर क्यों कहा जाए। निश्चित ही सूर्पनखा एक ऐसी भूमिका में रही, जिसके कारण सत्य की असत्य पर जीत, सुखमय समाज की स्थापना के साथ ही रामराज्य की कल्पना साकार हो सकी। अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ समालोचक साहित्यकार डॉ चंद्रिका प्रसाद चंद्र ने, शूर्पणखा खंड काव्य को काव्य की नवीन दृष्टि का परिणाम निरूपित करते हुए कहा, कि शूर्पणखा गौरीशंकर श्रीवास्तव”पथिक” के अभयारण्य काव्य कृति की प्रतिक्रिया में लिखी गई रचना है। किंबहुना तुलसीदास रचित रामचरित मानस से भी असहमति है। सूर्पनखा का क्षण भर में नाक कान काट देना, रघुवंशी का मान घटाना लगता है। सूर्पनखा जानती थी की रावण को राम ही मार सकते हैं। वन वन भटकती पति की हत्या की प्रति हिंसा की आग में सुलग रही सूर्पनखा अपने लक्ष्य को साधती है। जरा सा प्रणय निवेदन पर लक्ष्मण जैसा धीर-गंभीर रघुवंशी, किसी का नाक कान कैसे काट सकता है?
इसके पूर्व प्रसिद्ध कथाकार डॉ. लालजी गौतम ने श्रवण नामदेव की इस रचना की सराहना करते हुए, पुस्तक के विभिन्न पहलुओं पर गहन समीक्षात्मक दृष्टि डाली। शूर्पणखा यानी “सूर्य पन रखा” है!
डॉ. रामगरीब पाण्डेय “विकल” ने सूर्पनखा खंडकाव्य पर अपनी बात रखते हुए कहा कि, व्यक्ति अपनों की मर्यादा भंग होने से आहत होकर ही आत्महंता जैसे कदम उठा सकता है। इस उद्देश्य को लेकर ही शूर्पणखा ने अपना मानहरण का आरोप लक्ष्मण और राम पर लगाकर अपने पति के हंता भाई रावण को आक्रोशित और राम से युद्ध करने को उन्मुख किया।
वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल ने श्रवण प्रसाद जी की रचना शूर्पनखा पर अपनी खोजी दृष्टि डालते हुए,रामचरित्र मानस के विभिन्न पात्रों का उल्लेख किया। तथा लोक में फैली अराजकता के शमन के लिए, सूर्पनखा की भूमिका को बड़ा कदम निरूपित किया। शूर्पणखा के साथ ही “दक्षिण पथगामी कार्तिकेय” पर भी अपनी बात रखते हुए कहा कि जब मेहनत का उचित फल नहीं मिलता तो व्यक्ति के हृदय का आहत होना स्वाभाविक है। बुद्धि सदैव विजेता रही है, किंतु भावना का आहत होना कभी भी हितकारी नहीं हुआ है। इस अवसर पर उपस्थित डॉक्टर के.एल.नामदेव ने श्रवण नामदेव के इस सृजन की सराहना की। मध्य प्रदेश सांस्कृतिक विभाग के संचालक डा.एन.पी. नामदेव ने श्रवण जी की साहित्य सेवा, और रामचरितमानस के हाशिए पर रहे पात्रों पर समदर्शी दृष्टि की सराहना की। कार्यक्रम का संचालन बघेली सेवा मंच के अध्यक्ष साहित्यकार भृगुनाथ पाण्डेय “भ्रमर” ने किया!
कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित डॉक्टर महेश सिंह संपादक पत्रिका रीवा, मोहनलाल तिवारी अध्यक्ष खेल संघ रीवा, डॉ रामनरेश पटेल प्राचार्य, प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ राजीव लोचन तिवारी, कवि नागेंद्र मिश्र “मणि”, हसमत रीवानी, अमित द्विवेदी, रामकृष्ण द्विवेदी, अनुराधा पांडे, गीता शुक्ला, इंदिरा अग्निहोत्री, डॉक्टर स्मिता नामदेव, डॉक्टर राम सरोज द्विवेदी शांतिदूत, अमृता नामदेव, वैद्यनाथ नामदेव, कामता, भगवान दास, लक्ष्मी, विकास नामदेव, नारायण डिगवानी, ओमप्रकाश मिश्रा कथाकार, रमाकांत तिवारी साहित्यकार,कवि शिवानंद तिवारी, आशीष त्रिपाठी, पार्षद मनीष नामदेव, डॉक्टर रत्नेश नामदेव, मनोज, राकेश, रमेश नामदेव के अलावा श्रवण नामदेव जी के विशाल परिजनों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही!

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