रीवा। शहर के औद्योगिक क्षेत्र के उद्योगों से संपत्तिकर वसूलने की प्रक्रिया को मुक्त किए जाने की तैयारी की जा रही है। इस संबंध में सरकार ने नगर निगम ने अभिमत मांगा है। इसमें कहा गया है कि उद्योगों से टैक्स वसूलने की वर्तमान स्थिति की जानकारी के साथ अभिमत दिया जाए। मध्यप्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 132 एवं नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 की धारा 163 के संबंध में उद्योगों को संपत्तिकर एवं अन्य करों से मुक्त रखे जाने की तैयारी की जा रही है। इसी कारण नगर निकायों से भी उनकी राय ली जा रही है।

रीवा नगर निगम के साथ ही जिले के अन्य नगर परिषदों से भी यही जानकारी मांगी गई है। जिन नगर परिषदों के सीमा क्षेत्र में उद्योग संचालित हैं वहां पर भी संपत्तिकर से मुक्त रखने की तैयारी की जा रही है।
एमपी इंडस्ट्रियल डेवपलमेंट कार्पोरेशन की ओर से सरकार के सामने यह मांग रखी गई है कि अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार संपत्तिकर एवं अन्य करों से उद्योगों को मुक्त रखा जाए। उसी का हवाला देते हुए नगरीय निकायों से भी अभिमत चाहा गया है। इसके पहले भी कई बार निकायों की ओर से इस बात के लिए शासन को ही पत्र लिखे जाते रहे हैं कि उद्योगों द्वारा टैक्स देने में आनाकानी की जाती है, इस कारण सरकार के स्तर पर ही निर्देश दिए जाएं कि वह जमा कराएं। अब सरकार ने ही कहा है कि उद्योगों को संपत्तिकर से मुक्त रखा जाए।

टैक्स की दोहरी मार होने का दिया हवाला
नगर निगम के पास आए शासन के पत्र में एमआईडीसी के पत्र को भी साझा किया गया है। जिसमें कहा गया है कि औद्योगिक केन्द्र विकास निगम की भूमि पर शहरी क्षेत्र में स्थापित उद्योगों के परिसर में अन्य विकास कार्य और सुविधाएं मुहैया कराई जाती रही हैं। इस मद में औद्योगिक इकाइयों से संधारण शुल्क भी वसूला जाता है। ऐसे में नगरीय निकाय को भी टैक्स देने पर दोहरी मार का सामना करना पड़ता है। इससे ईज आफ डूइंग बिजनेस के उद्देश्य में कठिनाई पैदा हो रही है।

रीवा में उद्योगों ने कभी नहीं दिया टैक्स
रीवा के उद्योग विहार चोरहटा में करीब 78 की संख्या में उद्योग संचालित किए जा रहे हैं। इनकी ओर से नगर निगम को कभी भी टैक्स नहीं दिया गया है। वर्ष 2003 में चोरहटा को जब नगर निगम की सीमा में शामिल किया गया, उस दौरान संपत्तिकर का अधिरोपण किया गया था। जिसके विरोध में दो कंपनियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। उसकी सुनवाई लंबे समय से चल रही है उसका निराकरण नहीं हो पाया है। इसी आड़ में अब दूसरे उद्योगों की ओर से भी टैक्स जमा नहीं किया जा रहा है।

पांच करोड़ से अधिक का नोटिस दे चुका है निगम
कुछ समय पहले ही नगर निगम ने उद्योग विहार चोरहटा से टैक्स वसूली का प्रयास किया था। इसमें निगम की ओर से कोर्ट के ही आदेश का हवाला देते हुए कहा गया था कि कोर्ट ने टैक्स वसूली के लिए सख्ती नहीं करने के लिए कहा है। लेकिन यह नहीं कहा गया है कि किसी तरह से टैक्स की मांग नहीं की जा सकती। सभी उद्योगों के संपत्तिकर के प्रारंभिक आंकलन के अनुसार करीब पांच करोड़ रुपए जमा कराने के लिए नोटिस भी दिया गया था। इतना ही नहीं नगर निगम के कर्मचारी लगातार कंपनियों में पहुंचकर गांधीगिरी के तरीके से गुलाब का फूल देकर टैक्स जमा कराने की मांग कर रहे थे। नगर निगम के इस नोटिस पर भी कुछ कंपनियों ने कोर्ट का रुख किया था। इसके बाद से संपत्तिकर या अन्य करों की वसूली का मामला ठप हो गया। इस क्षेत्र में नगर निगम ने पहले कार्य भी कराए थे।

पार्षदों ने कहा ऐसे में आत्मनिर्भर निकाय कैसे बनेगा
उद्योग विहार की औद्योगिक इकाई से संपत्तिकर नहीं लेने संबंधी पत्र की जानकारी सामने के बाद कई वार्डों के पार्षदों ने इसका विरोध किया है। एमआईसी सदस्य धनेन्द्र सिंह बाघेल ने कहा है कि एक ओर कहा जा रहा है कि आय के साधन बढ़ाकर निगम को आत्मनिर्भर बनाना है, वहीं उद्योगों को टैक्स से मुक्त करना समझ के परे है। नीतू अशोक पटेल ने कहा कि जनता का टैक्स कम करने के प्रस्ताव पर कहा जाता है कि इससे आर्थिक नुकसान होगा लेकिन उद्योगपतियों के लिए माफी देना सरकार का दोहरा चरित्र है। अर्चना अमृतलाल ने कहा है कि गरीबों की झोपड़ी पर टैक्स वसूली की जाती है और नहीं देने पर तालाबंद की जाती है। उद्योगों को टैक्स मुक्त किया जा रहा है जो उचित नहीं है। निर्दलीय पार्षद नम्रता सिंह ने भी कहा है कि उद्योगों से टैक्स वसूला जाना चाहिए, इससे निगम को बड़े राजस्व का फायदा होगा।
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रीवा का पहले से कोर्ट में मामला है, इसलिए नया प्रावधान उचित नहीं होगा। सरकार ने अभिमत मांगा है, एक ओर कहा जा रहा है कि निकायों को आत्मनिर्भर बनाना है और इस तरह से आय के स्त्रोत बंद किए जा रहे हैं। सरकार ने कोरोना काल में टैक्स बढ़ा दिया था, जिसकी मार आम शहरी झेल रहे हैं। मेरा मानना है कि छोटे करदाताओं के टैक्स कम कर उद्योगों से और वसूला जाना चाहिए।
अजय मिश्रा बाबा, महापौर

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