रीवा। आजादी के पहले वर्ष 1857 से रीवा में शुरू की गई परंपरा आज भी कायम है। यह परंपरा गंगा जमुनी तहजीब का सबसे बेहतर उदाहरण कही जाती है। रीवा राजघराने द्वारा शुरू की गई परंपरा आजादी के बाद से अब तक उसी अनुसार पूरी की जा रही है जैसे शुरुआती दौर में प्रारंभ की गई थी।

रीवा किले में 167 पुरानी परंपरा के अनुसार ताजिए ढोल अखाड़े बाज किला पहुंचकर अपना जौहर दिखाते हैं। इस। बार भी वही दृश्य देखने को मिला।
किले से शुरू हुई 167 वर्ष पुरानी गंगा जमुनी परंपरा के तहत ताजिए , ढोल, अखाड़े किले में पहुंचे । जिनका पूर्व मंत्री महाराजा पुष्पराज सिंह जूदेव ने स्वागत किया। सभी ताजिया दारों को एवं ढोल अखाड़े बाज को सम्मानित किया गया। बेहतर प्रदर्शन के लिए साल और ट्रॉफी से सम्मानित किया गया ।
ताजिया की परंपरा 167 वर्ष पूर्व किले से शुरू हुई थी। इसी तरह चली आ रही है । महाराज पुष्पराज सिंह ने किले की ताजिया का स्वागत कर परंपरा के अनुसार सभी का सम्मान किया। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से इतिहासकार असद खान, राजू रऊफ खान, गुलाम अहमद खान, राकेश सिंह गहरवार, बृजेंद्र सिंह रहे ।

इनका हुआ सम्मान
इनाम से जिन्हें सम्मानित किया गया उनमें बड़ी ताजिया, शाही ताजिया, दिलखुश खान अखाड़ा, उस्ताद दीदार खान हजरत तारा शाह का अखाड़ा, बिछिया हजरत मिस्कीन शाह का अखाड़ा आदि रहे । साल से सम्मानित होने वाले मौलाना रऊफ रिजवी, मोहसिन खान, उस्ताद फौजन खान, अजीमुद्दीन खान, खलीफा मोहम्मद शमी, मुन्ना भाई मोहर्रम कमेटी बिछिया, महफूज खान मुख्तार खान , इस्लाम अहमद गुड्डू , इत्रयाज खान, नदीम खान, गुल इकरार अफजल खान बिछिया , मोहर्रम कमेटी के अध्यक्ष सैफोज खान इत्यादि भारी संख्या में लोग उपस्थित हुए।

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