Thalassemia day Rewa MadhyaPradesh : बच्चों में थैलेसीमिया की बीमारिया अब तक ला-इलाज रही है लेकिन अब इसकी दवाएं अस्पतालों में मौजूद है। जिसकी वजह से लंबे समय तक दवाओं के जरिए इस बीमारी को स्थिर रखा जा सकता है। देश के कुछ हिस्सों में बीमारी को ठीक करने के लिए स्थाई हल के तौर पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सुविधाएं भी शुरू हो गई हैं। जिनसे बच्चे पूरी तरह से स्वस्थ हो रहे हैं।

रीवा मध्यप्रदेश में कई परिवार ऐसे हैं जिनके बच्चों में थैलेसीमिया की बीमारी थी तो वह शारीरिक रूप से कमजोर हो रहे थे और अन्य बच्चों की तरह वह खेल-कूद नहीं पाते थे। इनमें बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाद बच्चे स्वस्थ हैं और परिवार में खुशियां हैं।

चिकित्सकों का कहना है कि थैलेसीमिया एक वंशानुगत रक्त विकार है। यह शरीर की सामान्य हीमोग्लोबिन उत्पन्न करने की क्षमता को प्रभावित करता है। हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं को शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने और शरीर की अन्य कोशिकाओं को पोषण देने की अनुमति देता है। थैलेसीमिया समय के साथ हल्के या गंभीर एनीमिया और अन्य जटिलताओं का कारण भी बन सकता है।

इसके लक्षणों में थकान, सांस लेने में तकलीफ, ठंड अधिक महसूस होने, चक्कर आने, पीली त्वचा आदि प्रमुख हैं। बुखार भी कई बच्चों को नियमित रूप से बनी रहती है। थैलेसीमिया होने की प्रमुख वजहों में बताया गया है कि हीमोग्लोबिन में चार प्रोटीन श्रृंखलाएं, दो अल्फा ग्लोबिन श्रृंखलाएं और दो बीटा ग्लोबिन श्रृंखलाएं होती हैं। प्रत्येक श्रृंखला अल्फा और बीटा दोनों में आनुवंशिक जानकारी या जीन शामिल होते हैं, जो माता-पिता से प्राप्त होते हैं।

– सैकड़ा भर से अधिक बच्चों का नियमित इलाज
श्यामशाह मेडिकल कालेज रीवा के गांधी स्मारक अस्पताल और जिला अस्पताल में सैकड़ा भर से अधिक बच्चे इनदिनों नियमित रूप से थैलेसीमिया का उपचार ले रहे हैं। इस बीमारी को स्थिर रखने के लिए कुछ दवाएं सरकार की ओर से नि:शुल्क दी जा रही हैं। पूर्व में इस बीमारी से ग्रसित मरीजों की औसत उम्र 15-20 वर्ष मानी जाती थी लेकिन अब कई ऐसे मरीज हैं जो इस उम्र को भी पार कर चुके हैं और नियमित रूप से उपचार के जरिए जीवन जी रहे हैं। हाल के दिनों में करीब आधा दर्जन की संख्या में मरीजों को बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराया गया है जो अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं। रीवा में सबसे अधिक सिंधी समाज के बच्चों में यह बीमारी है। अनुवांशिकता की वजह से बच्चों में भी बीमारी का जीन पहुंच रहा है।

– नि:शुल्क ब्लड की व्यवस्था हो रही
थैलेसीमिया के मरीजों के लिए सरकार की ओर से नि:शुल्क ब्लड उपलब्ध कराने की व्यवस्था है। ब्लड बैंक में अन्य मरीजों को ब्लड देने के बदले उनसे किसी दूसरे गु्रप का लिया जाता है लेकिन थैलेसीमिया के मरीजों को नि:शुुल्क व्यवस्था की जा रही है। कई बार 15 से 20 दिन में ही ब्लड की जरूरत हो जाती है, जिससे डोनरों का भी इंतजाम अस्पताल प्रबंधन की ओर से किया गया है।

– जल्द शुरू होगा डे-केयर सेंटर
मेडिकल कालेज की ओर से थैलेसीमिया के मरीजों के लिए अलग से वार्ड बनाया जा रहा है। इसमें डे केयर सेंटर खोला जाएगा, जहां पर खून चढ़ाने एवं अन्य उपचार की व्यवस्था के साथ ही परिवार के लोगों के साथ काउंसिलिंग आदि की सुविधा दी जाएगी। मेडिकल कालेज प्रबंधन ने बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा भी रीवा में प्रारंभ कराने का प्रस्ताव शासन को भेजा है।

बीमारी से जीती जंग, परिवार में लौटी खुशियां
रीवा शहर के द्वारिका नगर में रहने वाले एक परिवार ने बीमारी के लिए जरूरी इलाज कराए और अब बच्चे के साथ ही पूरा परिवार खुश है। बच्चे के पिता मनोज राजपाल ने बताया कि शुरुआत में छह महीने तो उनका बेटा पर्व नागपाल पूरी तरह से स्वस्थ रहा लेकिन धीरे-धीरे बुखार होने लगा।

कई महीने दवाओं से ठीक हो जाता था, फिर कमजोरी लगने लगी तो डाक्टर ने ब्लड चढ़वाने के लिए बोला। बाद में थैलेसीमिया की जांच कराई तो उसकी पुष्टि हुई। करीब ढाई वर्ष की उम्र तक रीवा में ही उपचार चला। हर महीने ब्लड चढ़ाना पड़ता था। बच्चे का ब्लड ग्रुप बी-निगेटिव था, जिसकी वजह से कम संख्या में डोनर थे। करीब दस लोगों का गु्रप तैयार किया और उनसे नियमित ब्लड की मांग करते रहे और वह मदद भी करते रहे।

पांच साल पहले तमिलनाडु के सीएमसी वेल्लोर अस्पताल में बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराया। वहां पर करीब छह महीने तक रहकर उपचार सुविधा ली। बोन मैरो मैचिंग बच्चे की बहन सिमरन नागपाल की होने की वजह से परिवार को अधिक परेशान भी नहीं होना पड़ा। मनोज राजपाल का कहना है कि अब पूरी तरह से स्वस्थ है बच्चा और खेलकूद सहित अन्य गतिविधियों में हिस्सा लेता है।

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