रीवा। देश में लगाए गए आपातकाल के दौरान रीवा में भी विरोध में आवाज उठी थी। जिसकी वजह से यहां से भी बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में लिया गया था। आपातकाल के दौरान मीसा कानून के तहत जेल में बंद किए गए सुभाष श्रीवास्तव बताते हैं कि 25 जून 1975 को उस समय लोकतंत्र खतरे में पड़ गया था, जब तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मीसा कानून के तहत सख्ती शुरू कर दी थी। 18 माह 6 दिन रीवा जेल में आपातकाल में बंद रहने के दौरान कई तरह से प्रताडऩा भी झेलनी पड़ी।
सुभाष कहते हैं कि रीवा जेल में बड़ी संख्या में लोगों को लाया जाने लगा और वहां पर भी गांधीवादी तरीके से विरोध शुरू हुआ तो जबलपुर एवं दूसरे जेलों में रीवा के लोगों को शिफ्ट किया गया। आपातकाल की ज्यादती का एक बड़ा नमूना ये भी था कि लोग मीसा में गिरफ्तार होने के बाद अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए किसी भी अदालत में अपील नहीं कर सकते थे।
इसलिए उस समय कहा जाता था “नो अपील, नो वकील, नो दलील”। महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन जिन मूल्यों के लिए चलाया था वो मूल्य आपातकाल में खतरे में पडऩे लग गए थे।
दुनिया के सबसे बडे़ लोकतांत्रिक देश भारत का लोकतंत्र आज़ से ठीक 49 वर्ष पूर्व यानि 25 जून 1975 को उस समय खतरे में पड़ गया था, जब तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने “मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट” अर्थात मीसा कानून के तहत सम्पूर्ण देश में आपातकाल लगा दिया और लोकतंत्र का खात्मा करने की सोची समझी साज़िश की! इसीलिए यह दिन लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय कहा जाएगा!
दो मुख्य कारण थे
द्वितीय आज़ादी का आंदोलन कहे जाने वाले आपातकाल लगने के पीछे दो मुख्य कारण थे। पहला कारण था आज़ादी के आंदोलन के योद्धा लोकनायक जयप्रकाश नारायण की रहनुमाई में 7 मार्च 1975 को दिल्ली में कांग्रेसी हुकूमत के विरोध में छात्रों, नौजवानों, किसानों, मजदूरों के साथ ही साथ समस्त विपक्षी दलों का एक विशाल प्रदर्शन। बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों के साथ सम्पूर्ण सामाजिक परिवर्तन हेतु आहुत इस आंदोलन में तक़रीबन 10 लाख लोगों ने भाग लिया! यह प्रदर्शन इतना जबरजस्त था कि इंदिरा गांधी और उनकी पूरी सरकार हिल गयी, घबरा गयी! इसके पूर्व दिल्ली में इस तरह का जन प्रदर्शन कभी नही हुआ! इस सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन का प्रमुख नारा था राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां- “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”। इसीलिए आपातकाल लगने का पहला कारण बना देश की जनता का तात्कालीन सरकार के प्रति आक्रोश।
श्रीवास्तव ने आगे कहा कि आपातकाल लगने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण रहा 1971 में उत्तर प्रदेश की रायबरेली संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव, जिसमें प्रत्यक्ष रूप में देश के प्रख्यात समाजवादी नेता राजनारायण को कांग्रेस की उम्मीदवार इंदिरा गांधी ने चुनाव हरा दिया! राजनारायण ये चुनाव तो हार गए लेकिन उन्होनें इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ वो सारे सबूत इकट्ठे कर लिए जो इंदिरा गांधी के चुनाव को गलत या अवैध साबित कर सकते थे इन्ही सबूतों के आधार पर नेता राजनारायण ने इलाहबाद हाई कोर्ट में चुनाव को अवैध घोषित करने के लिए रिट पिटीशन दायर की! ठोस सबूतों के आधार पर इलाहबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश माननीय जगमोहन लाल सिन्हा ने कई वर्षो तक चले इस मुकदमें के बाद 12 जून 1975 को दुनिया को चौंका देने वाला ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया, जिसमें उन्होनें माना कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी तंत्र का दुरुपयोग किया है, इसलिए इंदिरा गांधी के 1971 के चुनाव को अवैध घोषित किया जाता है और 6 साल तक उन्हें चुनाव लड़ने के लिए प्रतिबंधित किया जाता है! इस निर्णय से बौखलाई इंदिरा गांधी द्वारा फ़ैसला आने के ठीक 13 दिन बाद यानि आज ही के दिन 25 जून 1975 को लोकतंत्र का गला घोंट कर सम्पूर्ण देश में आपातकाल लगा दिया गया जिसमें अभिव्यक्ति की आज़ादी समाप्त कर दी गयी। इस तानाशाही का विरोध करने वाले लोगों के लिखने और बोलने पर पाबंदी लगा दी गयी! परिवार नियोजन के नाम पर 17 साल के नौजवान से लेकर 75 साल के बुजुर्ग तक का ऑपरेशन कर दिया गया। प्रेस में सेंसरशिप लगा दी गयी और पूरे देश में सत्ता के विरोधियों को मीसा कनून के तहत चुन चुन कर जेल की सीकचों में ठूंस दिया गया!
श्रीवास्तव ने आगे बताया कि आपातकाल की ज्यादती का एक बड़ा नमूना ये भी था कि लोग मीसा में गिरफ़्तार होने के बाद अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए किसी भी अदालत में अपील नहीं कर सकते थे इसलिए उस समय कहा जाता था “नो अपील, नो वकील, नो दलील”। महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन जिन मूल्यों के लिए चलाया था वो मूल्य आपातकाल में खतरे में पड़ने लग गए थे! लोकतंत्र खतरे में पड़ने लग गया था! आलम ये था कि चहुँ ओर हो रही मनमानी से आम जनमानस में व्यापक भय व्याप्त हो गया! किंतु जब इंदिरा गांधी पर अंतराष्ट्रीय राजनैतिक दबाव पड़ा तो उसके चलते उन्हें 21 मार्च 1977 को इस देश से आपातकाल हटाना पड़ा और लोकसभा का चुनाव कराना पड़ा! और इस लोकसभा चुनाव में समाजवादी नेता राजनारायण ने कांग्रेस प्रत्याशी और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली लोकसभा से करारी मात दी।