Vulture State MadhyaPradesh

रीवा। टाइगर और चीता स्टेट मध्यप्रदेश को अब गिद्धों का स्टेट बनाए जाने की तैयारी चल रही है। जिस गति से गिद्धों की संख्या यहां दिख रही है उससे अब संभावनाएं तेज हो रही हैं। वन विभाग ने तैयारी की है कि रीवा में अधिक संख्या में गिद्धों का बसेरा हो। इसके लिए रीवा जिले में वन विभाग ने जटायु संरक्षण अभियान की शुरुआत की है। जिसमें वन विभाग के कर्मचारी जंगल में गिद्धों के ठिकाने पर निगरानी रख रहे हैं। साथ ही गांवों में भी अमला भेजा जा रहा है, जो लोगों को समझाइश दे रहा है कि गिद्ध पर्यावरण के लिए किस तरह से जरूरी हैं।

लोगों को बताया जा रहा है कि गिद्ध मुर्दाखोर पक्षी होते हैं, जो सड़े गले मांस को खाते हैं जिसमें असंख्य घातक जीवाणु होते हैं। इस तरह गिद्ध प्रकृति के सफाईकर्मी होते हैं, ये जहां मौजूद होते हैं, वहां के पारिस्थितिकी तंत्र को स्वच्छ व स्वस्थ करते हैं। बीते कुछ दशकों में गिद्धों की संख्या काफी हद तक कम हुई है। इसके प्रमुख कारणों में से एक डाइक्लोफेनेक दवा का मवेशी के उपचार के लिए उपयोग है। उपचारित बीमार मवेशी के मरने के बाद, जब गिद्ध उसके मांस को खाते हैं, तो यह दवा गिद्ध के गुर्दों को खराब कर देती है, जिससे कुछ ही दिनों में गिद्ध की मृत्यु हो जाती है। भारत सरकार ने वर्ष 2008 में डाइक्लोफेनेक का जानवरों के उपचार के लिए उपयोग प्रतिबंधित किया था।

दो दवाओं पर और लगा प्रतिबंध
वन विभाग के कर्मचारी इनदिनों गांवों में पशुपालकों और दवा विक्रेताओं के साथ संपर्क कर रहे हैं। कुछ समय पहले ही गिद्धों को बचाने के लिए सरकार ने दो दवाओं पर प्रतिबंध लगाया है। जिसमें केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक शामिल हैं। दवा विक्रेताओं से भी कहा जा रहा है कि इन दवाओं को वह सीधे तौर पर उपयोग के लिए नहीं बेचें। वहीं पशुपालकों को बताया जा रहा है कि उक्त दवाओं से गिद्धों की प्रजाति नष्ट हो रही है इस कारण वह इनका उपयोग करने से बचें। इसके अलावा निमेसुलाइड भी गिद्धों के लिए हानिकारक है, हालांकि इसका उपयोग अभी प्रतिबंधित नहीं किया गया है। जटायु संरक्षण अभियान के तहत लोगों को जागरुक किया जा रहा है। यह भी बताया जा रहा है कि प्रतिबंधित दवाओं का उपयोग करने या बेचते पाए जाने पर ड्रग एंड कास्मेटिक एक्ट और वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

अंडे देने का समय, दूरबीन से निगरानी
अभियान के तहत वनकर्मियों द्वारा दूरबीन से नजर रखी जा रही है। जिसमें गिद्धों के आसपास बंदर या अन्य जानवर नहीं जाएं इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इनदिनों गिद्धों द्वारा अंडे भी दिए जा रहे हैं। इस कारण उन्हें सुरक्षित रखने के लिए निगरानी बढ़ाई गई है। बताया गया है कि सबसे अधिक पुरवा जल प्रपात, सिरमौर और अंतरैला के क्षेत्रों में गिद्धों की संख्या देखी गई है। इसी तरह छुहिया, गड्डी और मोहनिया के पहाड़ में भी देखे जा रहे हैं। इस काम की निगरानी में सिरमौर क्षेत्र में रेंजर शुभम दुबे, प्रमोद द्विवेदी, रामयश रावत, राजेन्द्र साकेत, रामसुजान मिश्र, दीप कुमार सिंह, सुखलाल साकेत, अनुराग मिश्रा, विनीत सिंह, पुष्पराज सिंह, दीपक गुप्ता सहित अन्य की टीमें तैनात की गई हैं।

गिद्धों के संरक्षण के लिए प्रयास लगातार जारी हैं। रीवा जिले में भी इनकी गणना होना है। इनदिनों जिले में जटायु संरक्षण अभियान के तहत जंगली क्षेत्रों में इनकी निगरानी की जा रही है। साथ ही पशुपालकों को भी जागरुक किया जा रहा है कि ऐसी दवाओं का उपयोग नहीं करें जिससे मृत पशुओं को खाने से गिद्धों की मौतें हो रही हैं। बीते कुछ समय से रीवा जिले में गिद्धों की संख्या बढ़ रही है।
अनुपम शर्मा (IFS), वनमंडलाधिकारी रीवा
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