Thursday, September 19

रीवा। लंबे अंतराल के बाद रीवा में गिद्धों की उपस्थिति से पर्यावरण की दृष्टि से राहत भर खबर दी थी। अब करीब दो महीने के बाद जब मौसम में बदलाव हुआ है और ठंडी से गर्मी पडऩे लगी है तब गिद्धों की संख्या करीब आधी हो गई है। तीन दिनों तक चली गिद्धों की गणना का दूसरा चरण पूरा हो चुका है।

रीवा-मऊगंज जिले में 369 गिद्धों की उपस्थिति पाई गई है। इसके पहले 16  से 18 फरवरी 2024 तक पहले चरण की गणना हुई थी जिसमें गिद्धों की संख्या 648 पाई गई थी। करीब दो महीने के अंतराल के बाद जिले में 279 गिद्धों की संख्या कम हो गई है। यह कुल गिद्धों में करीब आधा संख्या मानी जा रही है। एक मई को दूसरे चरण की गणना पूरी होने के बाद वन मंडल की ओर से कुल संख्या बताई गई है।

पर्यावरण और गिद्धों पर अध्ययन करने वालों का मानना है कि मौसम के हिसाब से गिद्धों की आवाजाही होती रहती है। जंगल के हर हिस्से में उनके अनुकूल मौसम और पानी नहीं मिल पाने की वजह से वह रीवा से बाहर उड़ गए हैं। माना जा रहा है कि मौसम में बदलाव होने पर वह फिर से लौट आएंगे। दूसरे चरण की गिद्ध गणना के दौरान भी कई जगह गिद्धों का घोषला पाया गया है और चूजे देखे गए हैं। जिससे स्पष्ट हो रहा है कि यहां पर गिद्धों ने अपना रहवास बना लिया है।

कई प्रजातियों के गिद्धों की उपस्थिति यहां पाई गई है, जिससे माना जा रहा है कि आने वाले समय में रीवा गिद्धों का प्रमुख आकर्षण वाला क्षेत्र रहेगा। रीवा में वन विभाग द्वारा गिद्धों के संरक्षण के लिए जटायु अभियान चलाया जा रहा है। जिसमें गांवों में लोगों को जागरुक किया जा रहा है ताकि वह अपने पशुओं में उन दवाओं का उपयोग नहीं कराएं जो गिद्धों के लिए हानिकारक होते हैं। इसका सकारात्मक असर भी सामने आया है, कई जगह गिद्धों के रहवास बढ़े हैं।

– वन मंडल अगले साल भी करेगा गणना
गिद्धों को लेकर वन मंडल द्वारा जटायु संरक्षण अभियान के साथ ही कई अन्य तरह से कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। प्रदेश स्तर पर तो गणना तीन साल में होती है लेकिन वन मंडल रीवा के अधिकारियों ने तय किया है कि जागरुकता अभियान नियमित चलेगा और अगले वर्ष भी इसी तर्ज पर गणना की जाएगी।

गिद्धों की गणना का कार्य दूसरे चरण का पूरा हो गया है। पिछली गणना की तुलना में इस बार कम संख्या में देखे गए हैं। गिद्ध ऐसे पक्षी हैं जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते रहते हैं फिर वापस भी लौटते हैं। अब भी इनके कई जगह रहवास मिले हैं, जिससे उम्मीद है कि संख्या में वृद्धि होगी।
अनुपम शर्मा, डीएफओ रीवा
—————

एक्सपर्ट व्यू–
तीन प्रजातियां ठंड वाली जगह चली गईं
पिछली गणना में कुछ ऐसे गिद्ध पाए गए थे जो मूलरूप से स्थानीय प्रजाति के नहीं हैं। ये ठंड वाले क्षेत्रों में रहते हैं, वहां पर माइनस में तापमान जाता है तो कम ठंड वाले क्षेत्रों में येे चले आते हैं। इसमें प्रमुख रूप से सिनेरियस वल्चर(काला गिद्ध), हिमालयन वल्चर और यूरेनियस वल्चर शामिल हैं। इस बार की गणना में इनकी संख्या नहीं दिखी है। विंध्य में लांग बिल्ड वल्चर, ह्वाइट रम्पेड वल्चर, रेड हेडेड वल्चर और इजिप्सियन वल्चर स्थानीय प्रजाति के माने जाते हैं। यहां के मौसम के अनुकूल ये हैं। इस कारण सबसे अधिक घोषले इन्हीं प्रजातियों के देखे जाते हैं। जो संख्या इस बार स्थानीय गिद्धों की सामने आई है, वह संतोष जनक है। आने वाले दिनों में संख्या और बढ़ेगी।

दिलशेर खान, गिद्ध एक्सपर्ट

 

vulture number
vulture @rewa

दूसरे चरण की गणना रिपोर्ट
वन परिक्षेत्र—- वयस्क—अवयस्क— कुल
अतरैला——17–01—18
रीवा——-45—-03—–48
सिरमौर—–141—29—170
सेमरिया—-64—12—-76
हनुमना—-54—-03—57
—————————-
कुल—–321—48—-369
———————–

कहां कितने गिद्ध मिले
अंतरैला वन परिक्षेत्र के ओबरी उत्तरी में चार, ओबरी दक्षिणी में दस, गुरदरी पूर्वी में चार, रीवा के टीकर में तीन, पूर्वी मड़वा में पांच, बदवार में चार, महाडांड़ी में दो, सहिजना में ३३, सेंदहाई में एक, सिरमौर के चचाई में ६३, राजगढ़ में २१, सरई में ८६, सेमरिया के चचाई में १२, जदुआ में दो, पियावन में छह, पूर्वा उत्तरी में १२, दक्षिणी में ४१, बम्हनी में तीन, हनुमना के नाउन खुर्द में दो, पश्चिम बिल्ली घाट में १२, पूर्वी बिल्ली घाट में सात, मुनहाई में सात, सलैया में १२, हनुमना, हर्रई प्रताप सिंह में एक गिद्ध की उपस्थिति पाई गई।

Share.
Leave A Reply