Thursday, September 19

 World Heritage Day

रीवा जिले में विरासतों के रूप में कई किले मौजूद हैं। इसमें करीब आठ सौ वर्ष पहले बनाया गया क्योंटी का किला भी शामिल है। कई वर्षों तक यह राज्य संरक्षित स्मारक के रूप में चिन्हित था। अब पुरातत्व विभाग से वापस लेकर सरकार ने इसे पर्यटन निगम के हवाले कर दिया है।

करीब 38 वर्ष तक इस किले की देखरेख पुरातत्व विभाग के पास रही, जिसे फरवरी 2018 में पुरातत्व की सूची से सरकार ने डिनोटिफाइड कर दिया गया था, जिससे यहां पर निर्माण के रास्ते खुल गए थे। तब से लेकर अब तक यह किला वीरान पड़ा रहा, इसमें किसी तरह का कार्य भी नहीं किया गया। धीरे-धीरे यह जर्जर होने लगा है। 13वीं शताब्दी में रीवा राज्य के महाराजा शालिवाहन के पुत्र नागमल ने इसका निर्माण कराया था।

इस किले को 29 सितंबर 1980 को राज्य सरकार ने मध्यप्रदेश प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्वीय स्थल तथा अवशेष अधिनियम 1964 की धारा 3 की उपधारा(1) के तहत अधिसूचित किया था। तब से यहां पर किसी तरह का मनमानी निर्माण और अतिक्रमण प्रतिबंधित था। सरकार ने छह वर्ष पहले यह तर्क देते हुए कि अधिक समय तक क्योंटी किले को संरक्षित करने की आवश्यकता नहीं है। डिनोटिफाइड करने के साथ ही हेरिटेज होटल बनाए जाने के संकेत दिए गए थे।

यह किला 2.213 हेक्टेयर क्षेत्रफल में स्थित है। क्योंटी किले के पास ही एक भव्य प्रपात भी है। जहां पर बरसात के दिनों में विहंगम दृश्य बनता है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। पर्यटन निगम अब प्रपात के आसपास सुरक्षा व्यवस्था बनाने के साथ ही किले को हेरिटेज होटल के रूप में विकसित करने की तैयारी में है। अब तक इसमें हेरिटेज होटल का काम शुरू नहीं हो सका है।

रानी की बावड़ी भी उपेक्षा का शिकार
अब से करीब 350 वर्ष पहले रीवा शहर में एक बावड़ी बनाई गई थी। इसकी कलाकृतियां अपने आप में महत्वपूर्ण हैं। कई खूबियां होने के बावजूद यह उपेक्षा का शिकार है। दशकों से इसकी अनदेखी की जा रही है। कुछ हिस्से जर्जर होने लगे हैं। यहां पर राज्य संरक्षित स्मारक का बोर्ड भी लगा है, जहां बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराकर इसे पर्यटकों और शोधार्थियों के लिए आकर्षक बनाया जा सकता है, लेकिन अब तक ऐसा कुछ नहीं हो पाया। यह विरासत अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। शहर के गुढ़ चौराहे के पास तत्कालीन महाराजा भाव सिंह ने महारानी अजब कुंवरी के लिए बावड़ीयुक्त एक कोठी का निर्माण कराया था। यह बावड़ी लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के स्नागार के अलावा राजस्थान एवं मालवा की स्थापत्य शैलियों से प्रभावित है। इसका निर्माण वर्ष 1664-70 ईसवी के मध्य का बताया जाता है। कहा जाता है कि महारानी अजब कुंवरी की जीवनशैली उन दिनों अलग तरह की थी। उनके कहने पर ही जिले में कई तालाब और मंदिरों के साथ बगीचे विकसित कराए गए थे। वर्तमान में इसका संरक्षण नहीं होने की वजह से जर्जर हालत में है। यहां पर नशेडिय़ों का जमघट लगता है।

Share.
Leave A Reply