Thursday, September 19

विनायकदत्त शर्मा।
जगतजननी मां के रूप में जहां सबसे पहले ईश्वरीय आराधना हुई, जहां सनातन की आस्था को देवी उपासना का पहला संस्कार मिला, लगभग बारह हजार वर्ष पुराने ऐसे दुर्लभ उपासना स्थल विंध्य की कैमूर की पहाड़ियों में मौजूद हैं। कैमूर की इन पहाड़ियों में सिहावल के समीप कैराई, बघोर एवं मेढ़ौली इन तीन गांवों में  स्थित देवी उपासना स्थल  विश्व के पहले मानव निर्मित उपासना स्थल के रूप में सामने आते हैं। जिनकी बराबरी करने वाला कोई दूसरा ऐतिहासिक स्थल सामने नजर नहीं आता है।

अपर पैलियोलिथिक युग की भारत की ये एकमात्र साइटस हैं जिनमें आस्था के प्रमाण मिले हैं, जिनके सुरक्षा एवं संरक्षण की किये जाने की तत्काल आवश्यकता है  – ऐसा कहना है इंडोलाजिस्ट ललित मिश्र का जिन्होनें इन स्थलों का दुबारा अध्ययन एवं मूल्यांकन करने हेतु इस क्षेत्र का दौरा किया।

अंतराष्ट्रीय़ स्थिति

वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य सबसे प्राचीन उपासना स्थलों में तुर्की स्थित गोबेक्ली टेपे एवं लंदन स्थित स्टोनहेंज क्रमशः पहले एवं दूसरे नंबर पर आते हैं, तीसरे एवं चौथे नंबर हेतु इजिप्ट के पिरामिड एव चीन के शान्तुग प्रांत में स्थित ताई-शान, अपना अपना  दावा करते हैं, किंतु इन सबको पछाड़ते हुये कैमूर के बघोर गांव में बघोर -1 के नाम से चिह्नित देवी स्थल पहले नंबर पर दावा पेश करता है।

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इसके पहले भारत का कोई मंदिर या अन्य धार्मिक स्थल फ़िलहाल वैश्विक स्तर पर प्रचीनता के पैमानों पर अपना स्थान नहीं बना सका । इतिहास की किताबों में काफ़ी लंबे समय तक यही लिखा जाता रहा कि भारत में मंदिर निर्माण गुप्त साम्राज्य अर्थात चौथी शताब्दी केआस-पास  प्रचलित हुआ। इस प्रकार मंदिरों की प्राचीनता सोलह-सत्रह सौ वर्षों तक सीमित रह जाती है। कहने का अर्थ यह कि, प्रचीन मंदिरों की विधिवत वैज्ञानिक डेटिंग के अभाव में प्रचलित इतिहास की दृष्टि में बौद्ध स्तूप सनातन मंदिरों की तुलना में अधिक प्राचीन ठहरते हैं।

कितने प्राचीन हैं कैमूर के देवीस्थल

ललित मिश्र बताते हैं कि बघोर-1 एवं बघोर-2 की उपलब्ध कार्बन डेटिंग के आधार पर कैमूर के इन तीन गावों में स्थित देवी स्थलों की प्राचीनता लगभग 8300 वर्ष से 11,800 वर्ष के बीच आती है। यह प्राचीनता अब से चालीस वर्ष पूर्व बगैर कैलीबरेशन की कार्बन डेटिंग पर आधारित है, जिसका के बाद और आगे बढना तय है। तुर्की के गोबेक्ली टेपे की प्राचीनता 10,500 वर्ष से 11,500 वर्ष के बीच मानी जाती है, इस प्रकार गोबेक्ली टेपे की तुलना में कैमूर के देवीस्थल 300 वर्ष से 500 सौ वर्ष अधिक प्राचीन सिद्ध होते हैं।

चालीस वर्ष पूर्व हुआ अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण

सन 1982-83 में प्रयाग विवि के प्रो जीआर शर्मा के साथ प्रो० जे डी क्लार्क के नेतृत्व में बर्कले कैलिफ़ोर्निया युनिवर्सिटी, बर्कले की टीम ने इन स्थलों का सर्वेक्षण किया था।  टीम ने रिसर्च जरनल एंटीक्विटी में एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की, किंतु वह प्रयास समय के अंधेरे में लुप्त हो गया, इसलिये इनके दुबारा अध्ययन की आवश्यकता पड़ी। मेधौली गांव में अस्सी वर्ष के वृद्ध ब्रह्मदेव सिंह से मुलाकात हुई जिन्होने सन् 1982-83 में किये गये सर्वेक्षण में काम किया था, उन्होने बताया कि बर्कले से आया हुआ दल प्रतिदिन पांच रुपये की दर से काम कराता था। पत्रकारिता के छात्र विनायक दत्त ने ग्रामीणों के इंटरव्यू किये ।

विशेष तथ्य

खुले चबूतरों पर स्थित इन देवी स्थलों का प्रत्येक पत्थर रहस्यमय शक्ति पुंज समेटे हुये प्रतीत होता है। प्रत्येक चबूतरे पर बारह हजार वर्ष पहले पत्थरों पर बारीकी से उकेरी हुई त्रिकोण की आकृति पहली नजर में ही आकर्षित कर लेती है। कैमूर के ये स्थल प्रतीकों की वैश्विक जन्मस्थली के रूप में भी सामने आते हैं ।

ऋग्वेद के दसवें मंडल के एक सौ छियालीसवें सूक्त की अरण्यानि देवी के वर्णन से इनकी समरूपता प्राप्त होती है, अरण्यानि अर्थात वन देवी।  ग्रामीण द्वारा इन देवीस्थलों की अधिष्ठात्री को जिस प्रकार से वनसती के नाम से जाना जाता है, उससे इस तथ्य की पुष्टि हो जाती है। पश्चिमी लेखकों में जान मुइर ने  सन् 1870 में अरण्यानि देवी का अध्ययन किया था । 

 

उपेक्षा की वजह

इतनी प्राचीनता के बावजूद भारतीय इतिहासकारों द्वारा की गई उपेक्षा की वजह से अपने महत्व से वंचित रह गये ये देवीस्थल। किसी  ने एक लाइन में फ़र्टिलिटी कल्ट बताकर खानापूर्ति कर दी तो किसी ने इन देवी स्थानों को सनातन से जोड़ कर नही देखा . ।

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